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धनपाल का जीवन, समय तथा रचनायें
अपनी बहन सुन्दरी के लिए वि. सं. 1029 में धारा नगरी में की थी, जैसाकि ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थाकार ने स्वयं सूचित किया हैं । 1
क्रमबद्धता नहीं है और न
इस कोष में 944 शब्दों के पर्यायवाची दिए गये हैं, जिनमें से 334 शब्द अर्थात् लगभग एक तिहाई शब्द देशी हैं तथा शेष तत्सम एवं तद्भव | 275 गाथाओं में शब्दों के पर्याय दिये गये हैं तथा अन्तिम चार गाथाओं में ग्रन्थकार ने ग्रन्थ-रचना का उद्देश्य, स्थान तथा अपना नाम निर्देश किया है । इसमें शब्दों के संकलन में किसी प्रकार की ही शब्दों का विभाजन किया गया है । प्रारम्भ में एक गाथा से सत्रह शब्दों के पर्यायवाची बताये गये हैं । बीसवीं गाथा से शब्दों के पर्याय गाथार्ध द्वारा सूचित किये गये हैं । 2 इसके पश्चात् गाथा के एक-एक चरण से शब्दों के पर्यायवाची दिये गये हैं । 3 पाइयलच्छीनाममाला, 4 इस नाम के विपरीत इस कोष में नाम के अतिरिक्त क्रियारूप, क्रिया-विशेषण तथा प्रत्यय भी दिये गये हैं ।
इस कोष की रचना जैन महाराष्ट्री प्राकृत में की गई है । इसका अपर नाम धनपालीय कोष भी पाया जाता है । धनपाल ने स्वयं अपने कोष के अन्त में इसे 'देशी' भी कहा है, अतः सम्भव है उसके समय में यह देशी कोष के रूप में प्रसिद्ध रहा हो ।7
इस कोष में कुछ शब्द ऐसे भी आए हैं, जिनका प्रयोग आज भी लोकभाषाओं में होता है । उदाहरणार्थं अलस के लिए मट्ट, पल्लव के लिए कुंपल, ये शब्द ब्रजभाषा, भोजपुरी तथा खड़ी बोली में प्रयुक्त होता है ।
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विक्कमकालस्स गए अउणत्तीसुत्तरे सहस्सम्मि | मालवर्नारिदधाडीए लूडिए मन्नखेडम्मि | धारानयरीए परिट्ठिएण मग्गे ठिआए अणवज्जे । कज्जे कण्ठबहिणीए 'सुन्दरी' नामधिज्जाए ||
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इत्ता गाद्धे हि वणिमो वस्तुपज्जाए
इत्तो नामग्गाम गाहाचलणेंसु चितेमि ।।
वुच्छं 'पाइयलच्छि' त्ति नाममालं निसामेह
कापड़िया, हीरालाल रसिकदास : प्राकृत भाषा अने साहित्य,
- पाइयलच्छी, गाथा 276, 77
- वही, गाथा 19
- वही, गाथा 1
वही, गाथा 1
Į 58, 1940
कापड़िया, हीरालाल रसिकदास : जैन संस्कृत साहित्य नो इतिहास,
भाग 1, पृ. 109
पाइयलच्छी नाममाला, गाथा 278 पाइयलच्छीनाममाला, गाथा, 15 वही, गाथा 54