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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
समस्त वाङ्गमयविद् होते हुए भी राजा भोज के जिनागमोक्त कथाओं में कुतूहल उत्पन्न होने पर, उनके विनोद हेतु अद्भुतरसयुक्त इस कथा की रचना की।1।
(2) धनपाल ने राजा भोज की प्रशंसा में, तिलकमंजरी की प्रस्तावना में 7 पद्यों की रचना की है।
(3) धनपाल ने मुंज के पश्चात् भोज को उसका उत्तराधिकारी बताया है, जिसका राज्याभिषेक अत्यधिक प्रीति होने से मुंज ने स्वयं किया था। बाह्य प्रमाण
(1) इसके अतिरिक्त बाह्य प्रमाणों से भी भोज के समय में धनपाल की स्थिति सिद्ध होती है । प्रभावकचरित तथा प्रबंधचिंतामणि ये दोनों जैन ग्रन्थ भोज की सभा में धनपाल के साहसिक कार्यों का वर्णन करते हैं। भोज एवं धनपाल की मित्रता इतनी प्रसिद्ध हुई कि इसने कई दन्तकथाओं तथा किंवदन्तियों को जन्म दिया, जिनका वर्णन इन दोनों ग्रन्थों में पाया जाता है ।
(2) डी० सी० गांगुली के अनुसार-"He gained the favourable notice of king Bhoja and rose to be one of his principal court poets. The Ain-i-Akabari relates that of the five hundred poets of Bhoja's Court, Barruj (Vararuci) was the foremost, and the next Dhanapala”.6
(3) अन्य इतिहासकारों ने भी धनपाल का चारों परमार राजाओं, सीयक, मुंज, सिन्धुराज तथा भोज के समय पर्यन्त जीवित होना माना है ।।
1. निःशेषवाड्मयविदोऽपि जिनागभोक्ताः श्रोतुं कथा: समुपजातकुतूहलस्य । तस्यातदातचरितस्य विनोदहेतो राज्ञः स्फुटाद्भुतग्सा रचिता कथेयम् ।।
-तिलकमंजरी, पद्य 50 2. तिलकमंजरी, पद्य 43-49 3. "प्रीत्या योग्य इति प्रतापवसतिः ख्यातेन मुंजाख्यया, यः स्वे वाक्पतिराजभूमिपतिना राज्येऽभिषिक्तः स्वयम् ।।
-वही, पद्यं 43 4. प्रभावकचरित, महेन्द्रसूरिचरित, पृ० 138-151 5 मेस्तुंग, प्रबन्धचिन्तामणि, भोज-भीम प्रबन्ध, पृ० 36-42 6. Ganguli, D. C., History of Paramara Dynasty, p 282-83 7. प्रेमी, नाथूराम, जैन साहित्य और इतिहास, पृ० 409