Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री श्री सुमन मनि
संत का जीवन उपवन में खिले सुमन के समान है, उनकी | प्रसिद्ध रही है। इस धर्मक्षेत्र को शासक वर्ग ने प्रबंध एवं साधना-सौरभ का मधुपान करने हेतु प्रत्येक जिज्ञासु लालायित अन्य दृष्टि से अनेक प्रांतों के रूप में विभक्त करके अनेक
नाम दिए हैं। इन नामों में एक गौरवशाली नाम है - परमश्रद्धेय श्री सुमनमुनि जी म.सा. का जीवन भी
"राजस्थान" मरूधरा की भूमि; वह भूमि है जो सभी
क्षेत्रों - धर्म, वीरता, देश भक्तों आदि की जननी रही त्याग, संयम, सरलता, समता और शुचिता का जीता
है। राणा सांगा, महाराणा प्रताप आदि ऐसे वीरों के नाम जागता स्वरूप है। अर्धशतक संयम साधना से शुचिभूत
हैं जो देश की रक्षा के लिए तन-मन-धन से सदैव तत्पर आपका जीवन सभी के लिए वंदनीय है। आपका बाह्य
रहे हैं। भामाशाह जैसे दानवीर भी इसी धरा की देन हैं। व्यक्तित्व जितना मोहक और भव्य है, उससे भी कहीं
मीराँ जैसी भक्त-प्रवीणा महिला भी इसी प्रांत की गुण अधिक अंतरंग जीवन प्रतिबिंब आकर्षक है और वह
गरिमा को प्रकट करनेवाली देवी रही है और इसी धरा आपके दैनिक कृतित्व में झलकता हैं। आपका जीवन
पर (बीकानेर की वीर प्रसू भूमि में) श्री मुनि सुमन कुमारजी साहस, स्नेह, संगठन की निर्मल गंगा बहानेवाले सद्गुणों
जैसे तपस्वी त्यागी-संयमी गुणों से युक्त अद्वितीय संयमी का सुहावना ‘सुमनदस्ता' है। जिसकी सुवास से आकृष्ट
साधु ने जन्म लिया। होकर मेरा मन भ्रमर सदैव आपके चरणों में आस्थावान्
___ आपश्री आगमों के व्याख्याता हैं, प्रबंध की दृष्टि एवं रहा है। आपकी कृपा का पात्र बनकर मैं अपने को
संघ-ऐक्य की दृष्टि से दूरदर्शी विद्वान् संत है। जिनकी सौभाग्यशाली मानता हूँ। मैं आपके चिरायु जीवन की
साधना की सुगंध समस्त जैन समाज को सुगंधित कर रही शुभकामना करता हुआ, आपके पुनीत पदाम्बुजों में प्रणाम
है। उन्होंने सर्वत्र धर्मप्रचार करते हुए समस्त उत्तरी भारत करता हूँ।
को अपनी चरण रज से पावन किया है और अब दक्षिण जे. मोहनलाल चोरड़िया, मैलापुर भारत को अपने धर्मसंदेशों द्वारा पावन कर रहे हैं। (अध्यक्ष, अ.भा.स्था. जैन कॉन्फ्रेंस, तमिलनाडु - शाखा) त्याग-तपस्या, सरलता, संयम आदि की दृष्टि से आपश्री
का उत्तराध्ययन सूत्र के इन शब्दों से गुणगान किया जाय
तो वह अत्युक्ति नहीं होगी - धन्य है आपकी अद्वितीय
अहो ते अञ्जवं साहू अहो ते साहू मद्दवं । साधना
अहो ते उत्तमा खन्ति, अहो ते मुत्ति उत्तमा।।
मुनिवर, आपकी आर्जवता, सरलता, सहनशीलता, विद्वद्वरेण्य श्री सुमनमुनिजी महाराज के चरणों में
क्षमा प्रदान करने की क्षमता और आपकी मोक्ष के लिए श्रध्दार्पित। इस विश्व में कुछ ऐसी महान आत्माएं भी
की जानेवाली साधना अद्वितीय है, धन्य है ! प्रशंसनीय होती हैं जो विश्व को नवजागृति का मधुर संदेश देती हैं, सुप्त मानव जाति में नवचेतना जागृत करती हैं, संसार को ____ आपकी प्रवचन शैली अत्यन्त सरल, सुस्पष्ट, उद्बोधक नवजीवन प्रदान कर अच्छे एवं अत्यंत समुन्नत संस्कार एवं धर्ममयी होती है। आपकी दिनचर्या की पावनता एवं प्रदान करती है।
सुदृढ़ता के दर्शन कर श्रावक-श्राविकाएँ कृत-कृत्य हो भारत की पावनभूमि “धर्म-क्षेत्र” के नाम से भी | जाते हैं। |२४
टोगी
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