Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
षट्खंडागमकी प्रस्तावना यह कालप्रमाण तालिकारूपमें इस प्रकार रखा जा सकता है
अहोरात्र या दिवस = ३० मुहूर्त = २४ मुहूर्त
= २ नाली = ४८ मिनिट नाली
= ३८॥ लव = २४ मिनिट लव
= ७ स्तोक = ३७३१ सेकेंड स्तोक
७ उच्छ्वास = ५५६५ सेकेंड उच्छ्वास या प्राण = संख्यात आवली = ३४४३ सेकेंड आवलि
असंख्यात (ज. यु. असं.) समय समय
एक परमाणुके एक आकाशप्रदेशसे दूसरे आकाशप्रदेशमें
मन्दगतिसे जानेका काल एक सामान्य स्वस्थ प्राणीके ( मनुष्यके ) एक वार श्वास लेने और निकालनेमें जितना समय लगता है उसे उच्छ्वास कहते हैं। एक मुहूर्तमें इन उच्छ्वासोंकी संख्या ३७७३ कही गई है, जो उपर्युक्त प्रमाणानुसार इस प्रकार आती है-२४३८३४७४७=३७७३ । एक अहोरात्र (२४ घंटे) में ३७७३४३०=१,१३,१९० उच्छ्वास होते हैं। इसका प्रमाण एक मिनटमें ३४४३= ७८.६ आता है, जो आधुनिक मान्यताके अनुसार ही है।
एक मुहूर्तमेंसे एक समय कम करने पर भिन्नमुहूर्त होता है, तथा भिन्नमुहूर्तसे एक समय कम कालसे लगाकर एक आवलि व आवलिसे कम कालको भी अन्तर्मुहूर्त कहा है। (पृ. ६७) इस प्रकार एक अन्तर्मुहूर्त सामान्यतः संख्यात आवलि प्रमाण ही होता है, किन्तु कहीं कहीं भन्तर् शब्दको सामीप्यार्थक मानकर असंख्यात आवलि प्रमाण भी मान लिया गया है। (पृ. ६९)
___ पंद्रह दिनका एक पक्ष, दो पक्षका मास, दो मासकी ऋतु, तीन ऋतुओंका अयन, दो अयनका वर्ष, पांच वर्षका युग, चौरासी लाख वर्षका पूर्वांग, चौरासी लाख पूर्वांग का पूर्व, चौरासी पूर्वका नयुतांग, चौरासी लाख नयुतांग का नयुत, तथा इसीप्रकार चौरासी और चौरासी लाख गुणित क्रमसे कुमुदांग और कुमुद, पद्मांग और पद्म, नलिनांग और नलिन, कमलांग और कमल, त्रुटितांग और त्रुटित, अटटांग और अटट, अममांग और अमम, हाहांग और हाहाँ, हूहांग और हूहू, लतांग और लता, तथा महालतांग और महालता क्रमशः होते हैं । फिर चौरासी लाख गुणित क्रमसे श्रीकल्प ( या शिर:कंप), हस्तप्रहेलित (हस्तप्रहेलिका) और अचलप (चर्चिका) होते हैं । चौरासीको इकतीस वार परस्पर गुणा करनेसे अचलप्रकी वर्षाका प्रमाण आता है, जो नव्वे शून्यांकोंका होता है। यद्यपि इन नयुतांगादि काल-गणनाओंका उल्लेख प्रस्तुत ग्रंथभागमें नहीं आया, तथापि संख्यात गणनाकी मान्यताका कुछ बोध करानेके लिये यह
१ हाहांग और हाहा नामक संख्याओंके नाम राजवार्तिक व हरिवंशपुराण के कालविवरणमें नहीं पाये जाते ।
२ यह तिलोयपण्णत्तिके अनुसार है। किन्तु चौरासी को इकतीस वार परस्पर गुणित करनेसे (८४)३१ Logarithm के अनुसार केवल साठ (६०) अंकप्रमाण ही संख्या आती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org