Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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षट्खंडागमकी प्रस्तावना गुणस्थानोंकी अपेक्षा कथन किया गया है, वहां बतलाया गया है कि मिथ्यादृष्टि जीव इतने होते हैं, सासादनसम्यग्दृष्टि जीव इतने हैं; इत्यादि । अतएव जीवट्ठाणमें द्रव्यप्रमाणानुगमके लिये बंधक अधिकारका यही द्रव्यप्रमाणानुगम उपयोगी सिद्ध हुआ । (देखो षट. प्रथम भाग, पृ. १२९)
२ प्रमाणका स्वरूप द्रव्यप्रमाणानुगमकी उत्पत्ति बतलानेमें जो कुछ कहा गया है उसीसे स्पष्ट है कि यह भिन्न भिन्न गुणस्थानों और मार्गणास्थानोंमें जीवोंका प्रमाण बतलाया गया है। यह प्रमाण चार अपेक्षाओंसे बतलाया गया है, द्रव्य, काल, क्षेत्र और भाव ।
१. द्रव्यप्रमाण-द्रव्यप्रमाणके तीन भेद हैं, संख्यात, असंख्यात और अनन्त । जो संख्यान पंचेन्द्रियोंका विषय है वह संख्यात है। उससे ऊपर जो अवधिज्ञानका विषय है यह असंख्यात है और उससे ऊपर जो केवलज्ञानका विषय है वह अनन्त है ।
संख्यातके तीन भेद हैं, जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । गणनाका आदि एकसे माना जाता है। किन्तु एक केवल वस्तुकी सत्ताको स्थापित करता है, भेदको सूचित नहीं करता । भेदकी सूचना दोसे प्रारंभ होती है, और इसीलिये दोको संख्यातका आदि माना है। इसप्रकार जघन्य संख्यात दो है । उत्कृष्ट संख्यात आगे बतलाये जानेवाले जघन्य परीतासंख्यातसे एक कम होता है। तथा इन दोनों छोरोंके बीच जितनी भी संख्यायें पाई जाती हैं वे सब मध्यम संख्यातके भेद हैं।
___ असंख्यातके तीन भेद हैं, परीत, युक्त और असंख्यात, और इन तीनों से प्रत्येक पुनः जघन्य, मध्यम और उत्कृष्टके भेदसे तीन प्रकारका होता है। जघन्य परीतासंख्यातका प्रमाण अनवस्था, शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका, ऐसे चार कुंडोंको द्वीपसमुद्रोंकी गणनानुसार सरसोंसे भर भरकर निकालनेका प्रकार बतलाया गया है, जिसके लिये त्रिलोकसार गाथा १८-३५ देखिये । आगे बतलाये जानेवाले जघन्य युक्तासंख्यातसे एक कम करने पर उत्कृष्ट परीतासंख्यातका प्रमाण मिलता है, तथा जघन्य और उत्कृष्ट परीतके बीचकी सब गणना मध्यम परीतासंख्यातके भेद रूप है।
जघन्य परीतासंख्यातके वर्गित-संवर्गित करनेसे अर्थात् उस राशिको उतने ही वार गुणित प्रगुणित करनेसे जघन्य युक्तासंख्यातका प्रमाण प्राप्त होता है । आगे बतलाये जानेवाले जघन्य असंख्यातासंख्यातसे एक कम उत्कृष्ट युक्तासंख्यातका प्रमाण है और इन दोनोंके बीचकी सब गणना मध्यम युक्तासंख्यातके भेद हैं ।
१ संखाणं पंचिंदियविसओ तं संखेज णाम । तदो उवरि जं ओहिणाणविसओ तमसंखेम्जं णाम । तदो उवरि जे केवलणाणस्सेव विसओ तमणंतं णाम । (पृ. २६७-२६८)
२. एयादीया गणणा, वीयादीया हवेज्ज संखेज्जा'। (त्रि. सा, १६ ) जघन्यसंख्यातं द्विसंख्यं तस्य भेदमाइकत्वेन एकस्य तदभावात् । (गो. जी. जी. प्र. टीका ११८ गा.)
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