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• देह की अनित्यता का विचार करते-करते भरत महाराजा इतने भावविभोर हो गए कि आदर्श भवन (आरिसा भवन) में ही उन्हें केवलज्ञान हो गया।
• अस्ताचल की ओर द्रुत गति से आगे बढ़ रहे सूर्य को देखकर पवनपुत्र
हनुमान संसार से विरक्त हो गए।
'जो जल रहा है, वह मेरा नहीं और जो मेरा है, वह कभी जलने वाला नहीं।' इस प्रकार अन्यत्व भावना में लयलीन बने गजसुकुमाल मुनि साधना के शिखर पर पहुंच गए और सदा के लिए बन्धन-मुक्त
हो गए। • 'मैं अकेला हूँ, अकेला पाया हूँ और अकेला ही जाने वाला हूँ'... इस एकत्व भावना में मग्न बने अनाथी मुनि ने युवावस्था में ही संसार का त्याग कर दिया और संसार के बंधन में से मुक्त बन गए।
देह की अशुचि/दुर्गन्धता का दर्शन कराकर राजकुमारी मल्लिकुमारी ने स्वयं पर मुग्ध छह राजकुमारों को वैराग्य-भावना से रंजित कर दिया।
• लग्न-मण्डप में भावना के शिखर पर पहुँचे हुए गुणसागर राजकुमार
को केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई। —ऐसे एक नहीं, अनेक दृष्टान्त इतिहास के स्वणिम पृष्ठों पर अंकित हैं। • भावनाओं के महासागर में डुबकी लगाने के पूर्व ग्रन्थकार महर्षि का
कुछ अल्प परिचय प्राप्त कर लें। -महोपाध्याय श्रीमद् विनय विजयजी के जीवन-संदर्भ की स्पष्ट
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