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राग और द्वेष अज्ञान और मोह क्रोध, मान, माया और लोभ के ताप से संतप्त बनी आत्मा, जब भावनाओं के महासागर में डुबकी लगाती है,
तब
उसके मोह का ताप/संताप दूर हो जाता है, कषायों की आग शान्त हो जाती है और प्रात्मा परम आनन्द की अनुभूति करती है। देखा है कभी भावनाओं के उस महासागर को ? हिन्द महासागर या अरब की खाड़ी को तो शायद देखा ही होगा? परन्तु भावनाओं का महासागर तो उससे भी अधिक विराट् और गहन है। यदि आप उससे अपरिचित/अनजान हों तो आइए, महोपाध्याय श्रीमद् विनय विजयजी म. हमें उसका परिचय कराते हैं, मात्र परिचय ही नहीं, उन भावनाओं के साथ तदाकार/तन्मय बनने का उपाय भी बतलाते हैं।
भावनाओं की शक्ति अजोड़ है। जरा, भूतकाल के इतिहास को उठाकर देखें
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