Book Title: Shant Sudharas Part 01
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 12
________________ के माध्यम से युवा-आलम को भी जागृत किया है। अपने पूज्य गुरुदेव अध्यात्मयोगी पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर्यश्री के गुर्जर साहित्य का भी हिन्दी अनुवाद/संपादन कर हिन्दीभाषी प्रजा पर महान् उपकार कर रहे हैं। 'विवेचना' के क्षेत्र में भी आपका जैन समाज को अमूल्य योगदान रहा है। नवकार से वंदित्तु तक के प्रतिक्रमण सूत्रों की विवेचनाएँ कर आपने हिन्दीभाषी प्रजा पर बहुत उपकार किया है। आज से लगभग ३०० वर्ष पूर्व हुए योगिराज आनन्दघनजी महाराज द्वारा रचित 'प्रानन्दघन चौबीसी' पर भी लेखक मुनिश्री ने हिन्दी भाषा में सुन्दर विवेचना प्रस्तुत की है। प्रस्तुत 'शान्त सुधारस' ग्रन्थ का, विवेचनकार मुनिश्री ने बहुत ही सुन्दर व आकर्षक शैली में विवेचन किया है। विवेचन की भाषा अत्यन्त ही सरल व सरस है। बीच-बीच में विवेचनकार मुनिश्री ने प्राचीन/अर्वाचीन, वास्तविक काल्पनिक दृष्टान्तों के माध्यम से इस विवेचन को बहुत ही हृदयंगम बनाने का प्रयास किया है। उत्साह और स्फूर्ति ही लेखक मुनिश्री का जीवन-मंत्र है। वे सतत ज्ञान-ध्यान की आराधना/साधना में मग्न रहते हैं। किसी भी समय उनकी मुलाकात हो, वे किसी-न-किसी शुभ-शुभतर प्रवृत्ति में व्यस्त ही दिखाई देते हैं। ऐसे गुण-सम्पन्न महात्मा के द्वारा जनसंघ को उपयोगी ग्रन्थों की सुन्दर विवेचनाएँ प्राप्त होती रहे और अध्ययन अध्यापन कर पुण्यवन्त आत्माएँ आत्मकल्याण के पथ पर अग्रसर बनें, यही एक शुभाभिलाषा है। 000 ( १० )

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