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विवेचनकार की कलम से....
ज्येष्ठ मास और उसमें भी मध्याह्न काल , सूर्य अपनी पूर्ण शक्ति के साथ भयंकर ताप बरसा रहा है ; नीचे भूमि तपी हुई है और ऊपर सूर्य आग उगल रहा है , ऐसे समय में कोई पथिक तप्त रेती के मार्ग से प्रसार हो रहा है ; पथिक का देह पसीने से लथपथ हो गया है, ऐसे समय में अचानक पथिक की दृष्टि विशाल वट-वृक्ष की ओर जाती है । पथिक तीव्र गति से वट-वृक्ष की ओर अपने कदम बढ़ाता है और विशाल वृक्ष की शीतल छाया में पहुँच जाता है। .. शीतल पवन की लहरियों से उसका पसीना दूर हो जाता है, बाह्य गर्मी कम हो जाती है और उसे परम आनन्द/बाह्लाद का अनुभव होता है । उसका संतप्त चित्त प्रसन्नता से भर आता है। बस, इसी प्रकार
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