Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ सामान्य केवली व तीर्थकर समकित : पिछली कक्षा में तुमने केवली व तीर्थंकर के बारे में पूछा था। आज हम उसी बारे में बात करेंगे। प्रवेश : जी भाईश्री ! मुझे तो रात-भर इसी बात का इंतजार रहा। समकित : अरे ! इतनी वेसब्री ठीक नहीं। हर काम अपना समय आने पर ही होता है। सुनो ! जिन्होंने गृहस्थ दशा त्यागकर, मुनि धर्म अंगीकार कर, स्वयं की साधना द्वारा चार घाति-कर्मों का नाश करके अनंत चतुष्टय प्रगट कर लिये हैं, वे सभी अरिहंत भगवान केवलज्ञान (अनंत-ज्ञान) आदि वाले होने के कारण केवली कहलाते हैं। यह केवली ही अरि (शत्रुओं) यानि कि घाति-कर्मों का हनन (नाश) करने वाले होने के कारण अरिहंत कहलाते हैं। प्रवेश : यह केवलज्ञान (अनंत-ज्ञान ) क्या होता है ? समकित : जो ज्ञान सबको एक साथ जाने उसे केवलज्ञान कहते हैं। केवलज्ञानी यानि कि केवली को कुछ भी जानना बाकी नहीं रहता। प्रवेश : और तीर्थंकर? समकित : केवली या कहो कि अरिहंत दो प्रकार के होते हैं: 1. सामान्य केवली या अरिहंत 2. तीर्थंकर केवली या अरिहंत प्रवेश : क्या ये दोनों ही भगवान नहीं हैं ? समकित : क्यों नहीं हैं ? जिन्होंने घाति-कर्मों का नाश किया, केवलज्ञान आदि प्रगट किये यानि कि अरिहंत दशा प्रगट की, वे सभी भगवान हैं। चाहे तीर्थंकर केवली हों या सामान्य केवली। 1.self 2.enemies 3.infinite-knowledge