Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ उत्तम व शरण समकित : पिछली कक्षा में हमने देखा कि अरिहंत, सिद्ध, साधु व केवली भगवान का बताया हुआ वीतरागी जैन धर्म लोक में मंगल है। आज हम उत्तम व शरण के बारे में चर्चा करेंगे। उत्तम कहते हैं सबसे महान' को। सबसे महान का मतलब है-सबसे अच्छा यानि कि वह चीज जिससे अच्छा दुनिया में और कुछ भी न हो। प्रवेश : ऐसे उत्तम कौन हैं ? समकित : लोक (दुनिया) में चार उत्तम हैं, जैसा कि हम रोज बोलते हैं: चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो / अर्थ- लोक में चार उत्तम हैं, अरिहंत भगवान उत्तम हैं, सिद्ध भगवान उतम हैं, साधु (आचार्य, उपाध्याय व साधु) उत्तम हैं और केवली भगवान का बताया हुआ वीतरागी जैन धर्म उत्तम है। प्रवेश : और शरण ? समकित : शरण सहारे को कहते हैं। जो हमको भयरहित करे वही शरण है। मंगल और उत्तम की तरह शरण भी चार हैं: चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरिहंते सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि साहू सरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्ण्तं धम्म सरणं पव्वज्जामि। अर्थ- मैं चार की शरण में जाता हूँ, मैं अरिहंत भगवान की शरण में जाता हूँ, सिद्ध भगवान की शरण में जाता हूँ, साधु (आचार्य, उपाध्याय व साधु) की शरण में जाता हूँ और केवली भगवान द्वारा बताये गये वीतरागी जैन धर्म की शरण में जाता हूँ। 1.greatest 2.aid 3.fearless