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समयसार गाथा १२८ से १२९ णाणमया भावाओ णाणमओ चेव जायदे भावो । जम्हा तम्हा णाणिस्स सव्वे भावा हु णाणमया ॥१२८॥ अण्णाणमया भावा अण्णाणो चेव जायदे भावो । जम्हा तम्हा भावा अण्णाणमया अणाणिस्स ॥ १२९॥ ज्ञानमय परिणाम से परिणाम हों सब ज्ञानमय । बस इसलिए सद्ज्ञानियों के भाव हों सद्ज्ञानमय ॥१२८॥ अज्ञानमय परिणाम से परिणाम हों अज्ञानमय ।
बस इसलिए अज्ञानियों के भाव हों अज्ञानमय ॥१२९॥ - क्योंकि ज्ञानमय भाव में से ज्ञानमय भाव ही उत्पन्न होता है; इसलिए ज्ञानियों के समस्त भाव ज्ञानमय ही होते हैं। . -- क्योंकि अज्ञानमय भाव में से अज्ञानमय भाव ही उत्पन्न होते हैं; इसलिए अज्ञानियों के सभी भाव अज्ञानमय ही होते हैं।
इन गाथाओं का भाव आत्मख्याति में इसप्रकार व्यक्त किया गया है -
"वास्तव में अज्ञानमय भाव में से जो कोई भी भाव होता है, वह सभी अज्ञानमयता का उल्लंघन न करता हुआ, अज्ञानमय ही होता है; इसलिए अज्ञानियों के सभी भाव अज्ञानमय ही होते हैं और ज्ञानमय भाव में से जो कोई भी भाव होता है, वह सब ही ज्ञानमयता का उल्लंघन न करता हुआ, ज्ञानमय ही होता है; इसलिए ज्ञानियों के सब ही भाव ज्ञानमय होते हैं।" - आचार्य जयसेन तात्पर्यवृत्ति में 'उपादानकारण के समान ही कार्य होता है' - इस आगमवचन का स्मरण दिलाते हुए यह समझाते हैं कि ज्ञानमयभावों से ज्ञानमयभाव ही उत्पन्न होते हैं, निश्चयरत्नत्रयरूप ज्ञानभावों से मोक्षपर्यायरूप ज्ञानभाव ही उत्पन्न होता है तथा 'जौ का बीज बोने पर जिसप्रकार बासमती चावल पैदा नहीं होते' - इस उदाहरण से भी वे अपनी बात को पुष्ट करते हुए कहते हैं कि अज्ञानमयभावों से ज्ञानमय भाव उत्पन्न नहीं हो सकते।