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समयसार गाथा १५७ से १५९
१०८वें कलश में यह कहा था कि मोक्ष के हेतुओं का तिरोधायी होने से मुक्ति के मार्ग में समस्त कर्मों का निषेध किया गया है। अब उसी बात को आगामी गाथाओं के माध्यम से सोदाहरण सिद्ध करते हैं /
वत्थस्स सेदभावो जह णासेदि मलमेलणासत्तो । मिच्छत्तमलोच्छण्णं तह सम्मत्तं खु णादव्वं ॥ १५७ ॥ वत्थस्स सेदभावो जह णासेदि मलमेलणासत्तो । अण्णाणमलोच्छण्णं तह णाणं होदि णादव्वं ॥ १५८ ॥ वत्थस्स सेदभावो जह णासेदि मलमेलणासत्तो । कसायमलोच्छण्णं तह चारितं पि णादव्वं ॥ १५९ ॥ ज्यों श्वेतपन हो नष्ट पट का मैल के संयोग से । सम्यक्त्व भी त्यों नष्ट हो मिथ्यात्व मल के ज्यों श्वेतपन हो नष्ट पट का मैल के सद्ज्ञान भी त्यों नष्ट हो अज्ञान मल के ज्यों श्वेतपन हो नष्ट पट का मैल के चारित्र भी त्यों नष्ट होय कषायमल के जिसप्रकार कपड़े की सफेदी मैल के मिलने से नष्ट हो जाती है, तिरोभूत हो जाती है; उसीप्रकार मिथ्यात्वरूपी मैल से लिप्त होने पर सम्यक्त्व तिरोहित हो जाता है । - ऐसा जानना चाहिए।
लेप से ॥ १५७ ॥ संयोग से ।
लेप से ॥ १५८ ॥ संयोग से ।
लेप से ॥ १५९ ॥
जिसप्रकार कपड़े की सफेदी मैल के मिलने से नष्ट हो जाती है, तिरोभूत हो जाती है; उसीप्रकार अज्ञानरूपी मैल से लिप्त होने पर ज्ञान तिरोभूत हो जाता है । - ऐसा जानना चाहिए ।
जिसप्रकार कपड़े की सफेदी मैल के मिलने से नष्ट हो जाती है, तिरोभूत हो जाती है; उसीप्रकार कषायरूपी मैल से लिप्त होने पर चारित्र तिरोभूत हो जाता है । - ऐसा जानना चाहिए ।