Book Title: Samaysara Anushilan Part 02
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 199
________________ 390 समयसार अनुशीलन मिथ्यात्व अरु अविरमण योग कषाय के परिणाम हैं । सामान्य से ये चार प्रत्यय कर्म के कर्ता कहे ॥ १०९॥ मिथ्यात्व आदि सयोगि-जिन तक जो कहे गुणथान हैं । बस ये त्रयोदश भेद प्रत्यय के कहे जिनसूत्र में ॥ ११० ॥ पुद्गल करम के उदय से उत्पन्न ये सब अचेतन । करम के कर्ता हैं ये वेदक नहीं है आमा ॥ १११ ॥ गुण नाम के ये सभी प्रत्यय कर्म के कहे । कर्ता रहा ना जीव ये गुणथान ही उपयोग जीव अनन्य ज्यों तो जीव और अजीव यदि जीव और अजीव दोनों एक हों तो इसतरह । का दोष प्रत्यय कर्म अर नोकर्म में भी आयगा ॥ ११४॥ कर्ता कर्ता रहे ॥ ११२ ॥ यदि त्यों हि क्रोध अनन्य हो । दोनों एक ही हो जायेंगे ॥ ११३ ॥ यह आतमा । क्यों नहीं ? ॥ ११५ ॥ क्रोधान्य है अर अन्य है उपयोगमय तो कर्म अरु नोकर्म प्रत्यय अन्य होंगे यदि स्वयं ही कर्मभाव से परिणत न हो ना बंधे ही तो अपरिणामी सिद्ध होगा कर्ममय पुद्गल दरव ॥ ११६ ॥ । नहीं । हो नास्ती ॥ ११७ ॥ कर्मत्व में यदि वर्गणाएँ परिणमित होंगी तो सिद्ध होगा सांख्यमत संसार की यदि परिणमावे जीव पुद्गल दरव को कर्मत्व में । पर परिणमावे किसतरह वह अपरिणामी वस्तु को ॥ ११८ ॥ यदि स्वयं ही परिणमे वे पुद्गल दरव कर्मत्व में । मिथ्या रही यह बात उनको परिणमावें आतमा ॥ ११९ ॥ जड़कर्म परिणत जिसतरह पुद्गल दरव ही कर्म है । जड़ज्ञान - आवरणादि परिणत ज्ञान-आवरणादि हैं ॥ १२० ॥ यदि स्वयं ही ना बंधे अर क्रोधादिमय परिणत न हो । तो अपरिणामी सिद्ध होगा जीव तेरे मत विषं ॥ १२१ ॥ स्वयं ही क्रोधादि में यदि जीव ना हो परिणमित । तो सिद्ध होगा सांख्यमत संसार की हो नास्ती ॥ १२२ ॥

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