Book Title: Samaysara Anushilan Part 02
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 195
________________ समयसार अनुशीलन (सवैया तेईसा) आश्रय कारण रूप सवादसुं भेद विचारि गिनें दोऊ न्यारे, पुण्यरुपाप शुभाशुभ भावनि बन्ध भये सुखदुःखकरारे । ज्ञान भये दोऊ एक लखै बुध आश्रय आदि समान विचारे, बन्ध के कारण हैं दोऊ रूप इन्हें तजि जिनमुनि मोक्ष पधारे ॥ 386 आश्रय, कारण, स्वरूप और अनुभव इन चार के माध्यम से पुण्य और पाप में भिन्नता का जो विचार अज्ञानी ने प्रस्तुत किया था या अज्ञानावस्था में खड़ा हुआ था, उसके अनुसार शुभभाव पुण्य बंध के और अशुभभाव पापबंध के कारण होकर सुख-दुःख करने वाले थे; किन्तु सम्यग्ज्ञानज्योति जगने पर ज्ञानी -ने ऐसा विचार किया कि दोनों एक ही हैं । इसप्रकार ज्ञानी जीवों ने उन्हें एक रूप में देखा और दोनों को ही बंध के कारण जानकर दोनों का ही त्याग करके ज्ञानी मुनिराज मोक्ष को पधार गये । तात्पर्य यह है कि मुक्ति प्राप्त करने का उपाय तो इन दोनों का अभाव करने रूप ही है। इसप्रकार यहाँ यह पुण्यपापाधिकार समाप्त हुआ। 1 अतः विषय- कषाय, व्यापार-धन्धा और व्यर्थ के वादविवादों से समय निकालकर वीतरागवाणी का अध्ययन करो, मनन करो, चिन्तन करो, बन सके तो दूसरों को भी पढ़ाओ, पढ़ने की प्रेरणा दो, इसे जनजन तक पहुँचाओ, घर-घर में बसाओ । स्वयं न कर सको तो यह काम करनेवालों को सहयोग अवश्य करो। वह भी न कर सको तो कम से कम इस भले काम की अनुमोदना ही करो। बुरी होनहार से यह भी संभव न हो तो कम से कम इसके विरुद्ध वातावरण तो मत बनाओ। इस काम में लगे लोगों की टाँग तो मत खींचो ! इसके अध्ययन, मनन को निरर्थक तो मत बताओ, इसके विरुद्ध वातावरण तो मत बनाओ। यदि आप इस महान् कार्य को नहीं कर सकते, करने के लिए लोगों को प्रेरणा नहीं दे सकते, तो कम से कम इस कार्य में लगे लोगों को निरुत्साहित तो मत करो, उनकी खिल्ली तो मत उड़ाओ। आपका इतना सहयोग ही हमें पर्याप्त होगा । परमभावप्रकाशक नयचक्र, पृष्ठ १७५ -

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