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समयसार अनुशीलन
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कर्मपरिणाम के निमित्तभूत रोगादि-अज्ञान परिणाम से परिणत जीव के साथ ही पुद्गलद्रव्य के कर्मरूप परिणाम होते हैं - यदि ऐसा तर्क उपस्थित किया जाय तो जिसप्रकार मिले हुये चूना और हल्दी का लाल परिणाम होता है; उसीप्रकार पुद्गल और जीवद्रव्य - दोनों के कर्मरूप परिणाम की आपत्ति आ जावे। परन्तु कर्मत्वरूप परिणाम तो एक पुद्गलद्रव्य के ही होता है; इसलिए जीव के रागादि-अज्ञान परिणाम जो कि कर्म के निमित्त हैं; उनसे भिन्न ही पुद्गलकर्म का परिणाम है।"
हल्दी और चूना के मिले हुए रूप का उदाहरण देकर आत्मख्याति के उक्त कथन में भी वही बात सिद्ध की गई है, जिसका स्पष्टीकरण ऊपर किया जा चुका है। - हल्दी और चूना जब मिलकर परिणमते हैं, तब दोनों ही लाल रंगरूप हो जाते हैं, न तो हल्दी पीली रहती है न चूना सफेद। इसीप्रकार यदि आत्मा और कार्माणवर्गणारूप पुद्गल - दोनों मिलकर परिणमें तो दोनों को ही या तो द्रव्यकर्मरूप हो जाना चाहिए या फिर दोनों को ही रागादिभावरूपभावकर्मरूप हो जाना चाहिए; परन्तु ऐसा नहीं होता; क्योंकि न तो आत्मा द्रव्यकर्मरूप परिणमित होता है और न कार्माणवर्गणारूप पुद्गल रागादिभावरूप परिणमित होता है; अत: यह स्पष्ट ही है कि आत्मा और पुद्गल मिलकर नहीं परिणमते। आत्मा के रागादिरूप परिणमन में पुद्गलकर्म का उदय निमित्त है
और पुद्गलकर्म के बंधने में आत्मा के रागादिभाव निमित्त हैं। रागादिभाव और द्रव्यकर्मों के बंधन तथा द्रव्यकर्मों का उदय और रागादभावों में परस्पर निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध होने पर भी दोनों का परिणमन स्वतन्त्र है। यह एकदम स्पष्ट है। - आत्मख्याति में मूल शब्द सुधा है, जिसका अनुवाद पण्डित जयचंदजी छाबड़ा ने फिटकरी किया है, सहजानन्द वर्णी ने भी फिटकरी ही किया है; जबकि अन्यत्र चूना किया गया है। शब्दकोश में भी चूना ही पाया जाता है, फिटकरी नहीं। प्रयोग करके देखने पर पता चला कि चूना और हल्दी के