Book Title: Samaysara Anushilan Part 02
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 164
________________ 355 गाथा १५६ से ज्ञान का भवन (होना) नहीं बनता। जो पारमार्थिक मोक्षहेतु हैं, वही एकद्रव्यस्वभाववाला (जीवस्वभाववाला) होने से उसके स्वभाव द्वारा ज्ञान का भवन (होना) बनता है।" यहाँ एक द्रव्यस्वभाव क्या है और अन्य द्रव्यस्वभाव क्या है?-यह समझना बहुत जरूरी है; क्योंकि इनकी चर्चा आगामी कलशों में भी आने वाली है। जिस द्रव्य में जो कार्य होना है, उस कार्य का कारण भी उसी द्रव्य में विद्यमान होना एकद्रव्यस्वभाव है। एकद्रव्यस्वभाववाला कारण ही सच्चा कारण है। मोक्ष भी आत्मा को होना है और आत्मा के श्रद्धान, ज्ञान और चारित्र गुण का परिणमन भी आत्मा में होना है और आत्मा के सम्मुख होकर होना है; इसकारण मुक्ति का कारण आत्मा और आत्मसम्मुख दर्शन, ज्ञान, चारित्र के परिणमन को कहना एकद्रव्यस्वभाववाला हेतु हुआ। शुभाशुभभाव और शुभाशुभक्रिया पुद्गलस्वभावी है; अतः वे आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति रूप कर्म के लिए अन्यद्रव्यस्वभावी है; अतः वे शुभाशुभभाव व शुभाशुभक्रिया मोक्ष के हेतु नहीं हो सकते। इस प्रकरण और इस गाथा का मूल प्रतिपाद्य यही है; विद्वानों को मोक्ष नहीं होता और यतियों को होता है - यह नहीं। यही कारण है कि टीका में आचार्य अमृतचन्द्र ने विद्वान और यति शब्द का उपयोग ही नहीं किया। यहाँ प्रकरण इस बात का नहीं है कि किसको मोक्ष होता है और किसको नहीं; अपितु इस बात का है कि मोक्ष का मूल हेतु क्या है और क्या नहीं? अतः आत्मख्याति में इसी बात पर ध्यान केन्द्रित किया गया है कि आत्मा के आश्रय से उत्पन्न होने वाले सम्यक् श्रद्धा, ज्ञान और चारित्ररूप ज्ञान का परिणमन ही मोक्ष का हेतु है, शुभाशुभभावरूप पुण्य-पाप नहीं। इस बात का स्पष्टीकरण स्वामीजी इसप्रकार करते हैं - "देखो, दया, दान, व्रत, तप, भक्ति आदि शुभभाव यद्यपि मोक्ष के वास्तविक कारण नहीं हैं; तथापि कुछ लोग इन्हें मोक्ष का परमार्थ कारण मानते हैं; उनके भ्रमनिवारणार्थ एवं परमार्थ मोक्ष के हेतुओं का ज्ञान कराने के लिये यहाँ उन समस्त शुभभावों में मोक्षमार्ग के कारणपने का निषेध किया गया है। भगतान आत्मा जैसा त्रिकाल स्वभाव से शद्ध चैतन्यस्वरूप वीतरागस्वभावी

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