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समयसार गाथा १५६ मोत्तूण णिच्छयटुं ववहारेण विदुसा पवटुंति । परमट्ठमस्सिदाण दु जदीण कम्मक्खओ विहिओ ॥ १५६॥ विद्वानगण भूतार्थ तज वर्तन करें व्यवहार में।
पर कर्मक्षय तो कहा है परमार्थ-आश्रित संत के ॥१५६॥ विद्वान लोग निश्चयनय के विषयभूत निज भगवान आत्मारूप परम-अर्थ को छोड़कर व्यवहार में प्रवर्तते हैं; किन्तु कर्मों का नाश तो निज भगवान आत्मारूप परम-अर्थ का आश्रय लेने वाले यतीश्वरों (मुनिराजों) के ही कहा गया है।
इस गाथा का अर्थ ऐसा भी किया जाता है - विद्वान् लोग निश्चयनय के विषयभूत निज भगवान आत्मा को छोड़कर व्यवहार में प्रवर्तन नहीं करते हैं; क्योंकि कर्मों का नाश तो परमार्थ का आश्रय लेने वाले मुनीश्वरों के ही कहा गया है। • यह अन्तर ववहारेण और ववहारे ण प्रयोग से आ गया है। ववहारे के साथ ण को मिलाने पर पहला अर्थ और ववहारे से ण को २.लग लिखने पर दूसरा अर्थ प्रतिफलित होता है। यह अन्तर करण कारक और अधिकरण कारक का अन्तर है। __ 'ववहारे' यह सप्तमी विभक्ति के एकवचन का, अधिकरण कारक का प्रयोग है। और 'ववहारेण' यह तृतीया के एकवचन का, करणकारक का प्रयोग है। ___ आचार्य जयसेन इसे अधिकरण का ही प्रयोग मानते हैं, इसकारण वे इसका अर्थ इसप्रकार करते हैं - __ "मोत्तूण णिच्छयठं ववहारे - निश्चयार्थं मुक्त्वा व्यवहारविषये ण विदुसा पवळंति - विद्वांसो ज्ञानिनो न प्रवर्तन्ते। कस्मात् ?