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समयसार अनुशीलन
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' (दोहा) निसि दिन मिथ्याभाव बहु, धरै मिथ्याती जीव ।
तात भावित करमको, करता कह्यो सदीव ॥ मिथ्यादृष्टि (सविकल्प) जीव दिन-रात मिथ्याभावों को धारण किए रहता है, किया करता है, इस कारण भावकर्मों का कर्ता कहा गया है।
यहाँ बनारसीदासजी ने सविकल्प का अर्थ सीधा मिथ्यादृष्टि ही ले लिया ' है। तात्पर्य यह है कि यहाँ चारित्रमोह संबंधी विकल्पों को विकल्प की श्रेणी में नहीं रखा है। 'सविकल्प' शब्द का अर्थ स्वामीजी इसप्रकार करते हैं -
"जो जीव विकल्प सहित है, उसका कर्ता-कर्मपना कभी नष्ट नहीं होता। अर्थात् जो ऐसे विकल्प सहित है कि - 'विकल्प मेरा है, मैं विकल्प का कर्ता हूँ और विकल्प मेरा कर्म है' - उसकी कर्ता-कर्मपने की वृत्ति चलती ही रहती है, उसको कभी भी निश्चय सम्यग्दर्शन प्रगट नहीं होता।" .. - स्वामीजी के उक्त कथन से भी यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यहाँ विकल्प
का अर्थ मात्र विकल्प का उठना ही नहीं है, अपितु विकल्प में ममत्वबुद्धि एवं कर्तृत्वबुद्धि का नाम विकल्प है, मिथ्यात्व संबंधी विकल्प का नाम विकल्प है। चारित्रमोह संबंधी विकल्प यहाँ अपेक्षित नहीं है। यहाँ पर में और विकल्पों में एकत्व-ममत्व करनेवाले एवं विकल्पों का कर्ता स्वयं को माननेवाले को ही सविकल्पक कहा गया है। ___ अब आगामी कलश में भी इसी बात को पुष्ट करते हुए कहते हैं कि जो कर्ता है, वह ज्ञाता नहीं हो सकता और जो ज्ञाता है, वह कर्ता नहीं हो सकता।
( रथोद्धता ) यः करोति स करोति केवलं, यस्तु वेत्ति स तु वेत्ति केवलम् । यः करोति न हि वेत्तिस क्वचित्, यस्तु वेत्ति न करोति स क्वचित् ॥१६॥
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१. प्रवचनरत्नाकर, भाग ४, पृष्ठ ३८१