Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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की भी।
[ ग्रन्थ सूखी-पंचम भाग
विशेष- पं० फतेहलाल ने इस टीका को शुद्ध किया और पं० रामनाथ शर्मा ने इसकी प्रतिलिपि
१६५२. रत्नकोश सूत्र व्याख्या संस्कृत विषय धर्म र०काल X से० काल X दि० जैन मंदिर अजमेर
-
४ । पत्र [सं० ७ । आ० १० X ४१ इव । भाषा -- पूर्ण वेष्टन सं० २०४ प्राप्ति स्थान- भ०
१६५३. रत्नत्रय वर्णन - X ॥ पत्र सं० ३७ विषय- धर्म । र० काश X | ले० काल X : अ मन्दिर राजमहल टोंक 1
।
विशेष-पव २२ से पाये दशलक्षण धर्म वन है पर वह अपूर्ण है ।
भाषा
१६५४. लाटीसंहिता - पांडे राजमल्ल पत्र सं० ७०० ११४५३ संस्कृत विषय – प्राचार शास्त्र । र०काल सं० १६४९ । ले० काल सं०१६४ । पूर्ण वेन सं० १७८ । प्राप्ति स्थान दि० जैन मन्दिर दीवानजी कामा ।
पा० १२५३ इस भाषा – संस्कृत वेष्टन सं० ८४ | प्राप्ति स्थान- दि० जैन
१६५५. प्रति सं० २ । पत्र
०६४ | ० ११४५ इख ले० काज सं० १७६० | पूर्ण | बेन सं० ५८ प्राप्ति स्थान दि० जैन पंचायती मंदिर कामा ।
विशेष - पत्र भीगे हुए हैं ।
१६५६. प्रति सं० ३ । पत्र सं० ७८० १०५० काल सं० १८८६ फागु सुदी ४ । । वे० सं० १२१ । प्राप्ति स्थान — दि० जैन मन्दिर पंचायती दूणी ।
विशेष- दूणी नगर में पार्श्वनाथ के मन्दिर में पंडित जी श्री १०८ श्री सीतारामजी के शिष्य शिवजी के महनार्थ लिखी गयी थी।
१६५७. लोकांमत निराकरण रास- सुमतिकीति पत्र सं० १३ | ०१४४४६ भाषा हिंदी विषय-धर्म २०० १६२७ चैत्र वृदी ले० काल X पूर्ण बेन सं० २०१ प्राप्तिस्थान दि० जैन मन्दिर गोरमी कोठा
१६५८. वसुनन्दि श्रावकाचार - प्र० बसुनन्दि । पत्र [सं०] १७ । भाषा संस्कृत विषय - ग्राचार शास्त्र र काल X | ले० काल सं० १८१० वेन सं० ३० । प्राप्ति स्थान - भट्टारकीय दि० जैन मन्दिर अजमेर | बशेष -- इसका दूसरा नाम उपासकाध्ययन भी है।
१६५६. प्रतिसं० २ । पत्र
०११
१३२० प्राप्ति स्थानम० दि० जैन मन्दिर अजमेर। ।
१६६०. प्रति सं० ३ ७०२ | प्राप्ति स्थान दि० जैन १६६१. प्रति सं० ४
वेशन सं० ७२ प्राप्ति स्थान
आ० १० X ५ इञ्च । माघ बुदी १० । पूर्ण |
० ११३५ इले० काल पूर्ण वेष्टन सं०
० १६० ११६३ इथ ले०काल X पूर्ण वेष्टनसं० मंदिर अजमेर ।
पत्र सं० ५५ | आ० दि० जैन मन्दिर लश्कर, जयपुर ।
विशेष- महाराजा जगतसिंह के शासनकाल में साह श्री जीवणराम ने प्रायदास मोट्टाकावासी से सवाई जयपुर में प्रतिलिपि करवाई थी।
X ६ इव ले० काल सं० १८६४ पौष बुदी ६