Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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कथा साहित्य ]
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मरासिंघ केरो सुत युवा, अनि जो अजोउ ते ते नवा । रूप लखी देज्या ज्या तास केहि सहयी नवि पोहचि प्रास । मसुदेव केरा सुन्दरपुत्र, जिणे घर राख्या धरना सत्र । सून्दर नारायण विराम रूप देखाग्या ते अभिराम ।।६।। मन्तिमश्री गिरनारि पाडियो सिद्ध तरशु पद सार । सुख अनंता भोगवे अकल अनंत अपार ।।१।। उषा थि मा चितम्यू' ए संसार असार । घडी एक करि मोकली लीधो संयम भार ।।२।। लिग छेदु नारी तण, स्वगिहिरा सुरदेव।। देव देवी क्रीडा था करि पूजी श्री जिनदेव ।।३।। अशिस्थ हरणज सांभलो एक चित्तसह अाज । जिनपुराण जोई रब्यु जिची सरि बहुकाज ।।४।। श्री जानभुषण ज्ञानी नमुजे ज्ञान सणो भंडार । तेह तणा मुख उपदेश थी रच्यो अरिणरुवहरण विचार 1५11 सुमतिकीरति मुनिवर नमुजे बहुजननि हितकार । मास तत्व नित चितवि जिन शासन शृगार ॥६॥ दक्षिण देशा नो गद्धपति श्री धर्मचन्द्र यति राय । नेहणा चरण कमलन की कथा कही जदुराय ।७।। देय सरस्वती गुरुनमी कहुं अरिणरुष हरण विचार । रत्नभूसरण सुरिवर कहि श्री जिन शासन सार ॥६॥ करि जोडी कहूं एटलु तव गुरगश्वो मुझ देव ।। विजू कामि मांगु नहीं भवे भने तुम्हारा पद सेव ।।६।। रचना इ बहुरस कहु या सांभलो सहुजनसार ।
श्री रत्नभूषण सूरीसर कहि बस्तो तम्ह जयकार ॥१०॥ इति श्री अनिरुध हरण श्री रत्नभूषा सूरि बिरजित समाप्त प्रशस्ति
संवत् १८१६ वर्षे भादवा सुदी २ भोमे सेगला ग्राम श्री प्रदीपवर चैत्यालये श्री मूलसंघे सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे कुदकुदाचर्यान्वये भट्टारका श्री सकलकीयान्वये भट्टारक श्री वाविभूषण तत्प? भट्टावा श्री रामकीति तपट्टे भट्टारक पमनंदि वेदा सद्गुरू भ्राता मुनि श्री मुनिचन्द्र तव शिष्य मुनि श्री नानचन्द्र तत् शिष्य परिण लाधाजीना लिखित । शुभं भवतु ।
४२२४. अनिरुवहरण कथा-७० जयसागर । पत्रसं० ४६ । प्रा०६३४४ इञ्च । भाषा-- हिन्दी । विषय-कथा । २० काल स. १७३२ । ले काल सं० १७९६ । पूर्ण । वेष्टन सं० २४६ ४६५ । प्राप्ति स्थान-दि० जन संभवनाथ मंदिर उदयपुर ।
विशेष-अंतिम भाग निम्न प्रकार है।