Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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गुटका संग्रह |
दोहा
कहें
देव शास्त्र गुरु नमी करी ए जिन पुण्य महान । मुझ बुद्धि सूजे की माल दूधि सुखदान ॥११॥ भविजन पायें पहरयों एक प्रश्ख हार । यशः कांति गुरुनाम कर सक संवत् दिश साल में शुद्ध फागुणना सुभमास । दामिदिन पूरण भया परचा वास भास ॥ ३॥ पढे सुखे जे भावथी भविजन को सुख कर्णं । लाल कहे मुझ भव भव यो प्रभु हो जो तुम चरण ||४|| संपूर्ण
इति वरचा वास
२. सार संग्रह
३. शान्तिहोम विधान
अन्तिम पुष्पिका
४. मंगलाष्टक
५. वृषभदेव लावणी
समाप्तं
भ० यशःकौति
लाल
( भट्टारक महः कीर्ति के शिष्य लाल )
गुजरात देश में चोरीवाङ नामक स्थान के आदिनाथ की लावणी है ।
उनकी प्रतिष्ठा का संतु निम्न प्रकार है
इसके अतिरिक्त नित्यमिति
संस्कृत उपाध्याय व्योमरस
संस्कृत
इति श्री उपाध्याय सोमरस विरचिते शांति होम विधान
संवत् उरणो सा साता वरषे वैशाख मास शुक्लपक्ष । षष्ठदिन सिगासा जिनकी प्रतिष्ठा कीधी मनहरखे || पूजाओं का संग्रह है।
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संस्कृत
हिन्दी
पू