Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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८७६ ]
[ ग्रन्थ सूची-पंचम भाग
२८. पद
थी चितामम्मिा स्वामो सांचा साहिब मेरा।
सोक हर तिहुँ लोक का उठ लीजल नाम सधेरा !! २०. रत्नत्रय विधान - ४ ।
संस्कृत पत्र सं० ४१ २१. लक्ष्मी स्तोत्र
पद्मप्रभदेव । २२. पूजाष्टक लोहट।
हिन्दी ॥ ४६ २३. पंचमेरु पूजा
भूधरदास । २४. सरस्वती पूजा - ज्ञान भूषण ।
विशेष- शिवलाल ने वैसाख सुदी ६ रविवार सं १८७८ में मालपुरा नगर में भौसों के बास के मन्दिर में स्वपठमा प्रतिलिपि की थी। २५. तत्वार्थसुत्र उभार स्वामी।
संस्कृत। २६. सहस्रनाम
आशीधर । २७. विनती
- रूपचन्द । जय जय जिन देवन के देवा, सुरनर सकल कर तुम सेवा । - रूपचन्द ।
हिन्दी। ७५ भव मैं जिमबर दरसरण पायो ।
.- कनककीत्ति
बंदो श्री जिनराय मन धन काय करेजी। ३०, विनती - रायचन्द ।
हिन्दों। , आज दिनम धनि खे लेख्या,
श्री जिनराज भला मुख पेस्या । ३१. विनली
- ब्र० जिनदास । प्रारम्स- स्वामी तू प्राधि जिद करी विनती श्राप तणी । अन्त- श्री सकलकीरति गुरु यदि जिनवर बीमती ।
ते भरगी ए ब्रह्म भगतो जिनदास' मुक्ति वहांगण ते भरे।। ३२. निशा वाटभाषा . - भैवा भगवतीदास ।
हिन्दी । पत्र सं०७९ विशेष.. पं. शिवलाल जली वाकलीकाल शिष्य प्राचार्य माणिकचन्द ने मालपुरा में नौसे के वास के मन्दिर में सवाई जयसिह के राज्य में प्रतिलिपि की थी। ३३. प्रारती - द्यानतराय :
हिन्वी। पत्र सं७६ ३४. पंचमवधावा - x ।
पश्च बधाबा म्हा के जीव अति भाया तो।
भवै हो अरिहंत सिद्ध जी की भावना जी ।। ३५. विनती - कुमुदचन्द्र ।
हिन्दी। पत्र सं० ८१ प्रारम्भ---दुनियां झामर झोल बिलूधी।
भगवंत भगति नहीं सुधी।।