Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ ग्रन्थ सूची-पंचम भाग
विशेष-व्रतों का ब्योरा है।
८८०५. व्रत विधान-X । पत्रस०४-१५ । आ०१०x४१ इन्ज । भाषा संस्कृत । विषयविधान । र०काल X । ले०काल सं० १८६२ । अपूर्ण । बेष्टन सं० ७५.। प्राप्ति स्थान-दि. जैन मन्दिर लश्कर जयपुर।
विशेष:-५० केसरीसिंह ने जयपुर में प्रतिलिपि कराई थी।
८८०६. प्रत विधान.-४।पत्र सं० १८ । आ. १.४५ इच। भाषा-संस्कृत । विषयपुजा । १० काल x ले०काल X । पूर्ण । वेष्टन सं० २८१1 प्राप्ति स्थान दि. जैन मन्दिर पायनाम बौगान दी।
८८०७. व्रत विधान–x । पत्र सं० ४ 1 प्रा० १२४५ इन्च । भाषा-संस्कृत । विषयविधान । र० कान ५ । लेकाल । परमं । वेष्टन सं० ५४६ । प्राप्ति स्थान-दि. जैन मंदिर लरकर जयपुर।
८८०८. खत विधान पूजा--अमरचन्द । पत्रसं० ४२ । पा०४७ इञ्च । भाषा: हिन्दी। विषय--पूजा । २० काल ४ । ले०काल X । पूर्णं । वेष्टन सं० ६ । प्राप्ति स्थान-दि जैन पंचायती मन्दिर अयामा । विशेष-प्रारम्भ का पाठ
बन्दी थी जिनराय पद, ग्यान बुद्धि दातार । दत पूजा भाषा कहों, यथा सुथ त अनुसार ।
अन्तिम पाठ
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तीन लोक मांहि सार मध्य लोक को विचार । ताके मध्य दीपोदधि असंख प्रमानजी। सब द्वीप मध्य लस जंबू नामा दीप यह ताकी दिशा दस तामै मरत परवान जी । तामै देस मेवात है बसत सुबुद्धी लोग नगर पिरोजपुर झिरकी महान जी। जामे चत्य तीन बने पूजत है लोग घने बसत श्रावग वहां बड़े पुन्थवान जी ॥१॥ मुलसंधी संधलरी सरस्वतीगच्छ जिसे गणसी बलात्कार कुन्दकुन्द यानजी । ऐसो कुलमाना है वंश में चंखेलवाल गोत की लहाड़या स्त्र करौ जिनवानी जी। किसन हीरालाल सृत अमरचन्द नित वाल को स्थाल व्रत कुटुंद वो बखान जी । या में भूख-चूक होय साध लीज्यो प्राग्य लोग मेरो दोष खिमा करो खिमा बडो गुण या उर प्रानो जी ।।२।।
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