Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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६५६ ]
[ ग्रन्थ सूची-पञ्चम भाग
कमलप्रभ सूरि
संस्कृत
१५
पद्मप्रभदेव
जिनपंजर स्तोत्र मांतिनाथ स्तोत्र घद्धमान स्तोत्र पाश्र्वनाथ स्तोत्र चौबीस तीर्थकर स्तवन ग्रादित्यवार कथा पाश्वनाब चिन्तामणि रास उपदेश पच्चीसी राजुलपच्चीपी कल्याण मन्दिर भाषा
१८२४ २५-४१ ४५-४४६-५३ ५४-६२
रामदास विनोदीलाल बनारसीदास
६२२४, गुटका सं० ८७ । पत्रसं० ५४ । प्रा० ७ x ५ इञ्च । भाषा-संस्कृत हिन्दी । लेकाल सं० १८३४ । पूर्ण । वेष्टन सं० १७७६ |
विशेष----मुख्य निम्न पाठों का संग्रह हैमक्तामर स्तोत्र मानतुगावार्य
संस्कृत भक्तामर स्तोत्र भाषा हेमराज
हिन्दी प्रादित्यवार कथा
मु. सकलकीति
(२० काल सं १७४४) कृएरणपच्चीसी यिनोदीलाल
हिन्दी विशेष-यादित्यवार कथा यादि अन्त माग निम्न प्रकार हैप्राविभाग
अर्थ प्रादित्यवार प्रत की कथा लिखतेप्रथम समरि जिनवर चौबीस, चौदही अपन जेमूनीस । सुमरों सारद भक्ति अनन्त, गुरु देवेन्द्रकीति महंत । मेरे मन इक उपज्यो भाउ, रविव्रत कथा कहत को चाउ । मै तुकहीन जु प्रक्षस करो तुम मुनीवर कवि नीकं धरी ।
अन्तिम पाठ--
हां जू सांयत् बिक्रमराह भले सत्रहरी मानी । ता ऊपर चवालीस जेठ सुदी दशमी जानौ । चारु जु मंगलवार हस्तुन छिन्तु जु परीयो । तब यह रविव्रत कथा मुनेन्द्र रचना सुभ करीयो । बारवार हौ कहा कहौ रवितत फल जु अनन्त । घरने प्रभु दया करी दीनी लछि अनन्त ॥१०६।। मगं गोत अग्रवाल सिह नगरी के ओ वासी। साहुमल को पूतु साहु भाऊ बुधि जुभासी ।