Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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११४४ ]
का निराकरता रास
मायागीत
त्रिलोकमार पीप
होली भास
सिन्दूर प्रकरण भाषा
विशेष – १४ प है। उदयपुर नगर में प्रतिलिपि की थी। बनारसीदास
सुदर्शनरा
रात्रि भोजनराम्र
दानकथा रास
दानकथा रास
अकलंक यति रात
नामावलि छंद नूर की शकुनावली
वीरचन्द
प्रशस्ति निम्न प्रकार है-
मेवाडदेशे
संवत् १७८५ वर्षे फागुण मासे शुक्लपक्षे प्रतिपदातिथी सोमवासरे पूर्व भाद्रपदन] साफा नामि गोवा श्री उदयपुरगगरे महाराणा श्री संग्रामसिह जी विजयराज्ये श्री मूलवंदे श्री संभवनाथ चैत्यालयेभ० श्री विजयकीति जी झाम्नाने श्री हूमड ज्ञातीय वृद्धि शास्यायां सुभावः पुम्य प्रभाव श्री देवगुरु भक्तिकारक श्री जिनाशाप्रतिपालक द्वादसत्राधारक लिखापितं वालेसा देवकी तत्सुत एक विज्ञति गुण विराजमान वाले सा श्री रतन जो पठनार्थं ।
व्र० जिनदास
हिन्दी
बारह व्रत गीत
ग्यारह प्रतिमा रास
कोटा नगर में रचना की गई थी।
मिया टुकड जयमाल
जीवडा गीत
प्र० नारात् (विजयीति का शिष्य) सुमतिकोति ५० जिनदास
दर्शन वीनती
भारी राम जिणंद गीत बणजारा गीत
अ० जयकीति
अ० कामराज नर
[ प्रम्थ सूची- पंचम भाग
हिन्दी
(९० काल सं० १६२७ माघ सुदी १)
हिन्दी
१७७
० जिनदास
"
हिन्दी
( ले०काल सं० १७८५)
पत्र सं० २४३ २८५ (ले० काल सं० १७८७)
२६५
कथा लुपदल साहकी )
साहू धनपाल की दान कथा है। हिन्दी
(२०काल सं० १९९७)
हिन्दी
प्रांख फड़कने संबन्धी विचार
हिन्दी
पत्रसं० ३५३
३६१