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[ ग्रन्थ सूची-पञ्चम भाग
कमलप्रभ सूरि
संस्कृत
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पद्मप्रभदेव
जिनपंजर स्तोत्र मांतिनाथ स्तोत्र घद्धमान स्तोत्र पाश्र्वनाथ स्तोत्र चौबीस तीर्थकर स्तवन ग्रादित्यवार कथा पाश्वनाब चिन्तामणि रास उपदेश पच्चीसी राजुलपच्चीपी कल्याण मन्दिर भाषा
१८२४ २५-४१ ४५-४४६-५३ ५४-६२
रामदास विनोदीलाल बनारसीदास
६२२४, गुटका सं० ८७ । पत्रसं० ५४ । प्रा० ७ x ५ इञ्च । भाषा-संस्कृत हिन्दी । लेकाल सं० १८३४ । पूर्ण । वेष्टन सं० १७७६ |
विशेष----मुख्य निम्न पाठों का संग्रह हैमक्तामर स्तोत्र मानतुगावार्य
संस्कृत भक्तामर स्तोत्र भाषा हेमराज
हिन्दी प्रादित्यवार कथा
मु. सकलकीति
(२० काल सं १७४४) कृएरणपच्चीसी यिनोदीलाल
हिन्दी विशेष-यादित्यवार कथा यादि अन्त माग निम्न प्रकार हैप्राविभाग
अर्थ प्रादित्यवार प्रत की कथा लिखतेप्रथम समरि जिनवर चौबीस, चौदही अपन जेमूनीस । सुमरों सारद भक्ति अनन्त, गुरु देवेन्द्रकीति महंत । मेरे मन इक उपज्यो भाउ, रविव्रत कथा कहत को चाउ । मै तुकहीन जु प्रक्षस करो तुम मुनीवर कवि नीकं धरी ।
अन्तिम पाठ--
हां जू सांयत् बिक्रमराह भले सत्रहरी मानी । ता ऊपर चवालीस जेठ सुदी दशमी जानौ । चारु जु मंगलवार हस्तुन छिन्तु जु परीयो । तब यह रविव्रत कथा मुनेन्द्र रचना सुभ करीयो । बारवार हौ कहा कहौ रवितत फल जु अनन्त । घरने प्रभु दया करी दीनी लछि अनन्त ॥१०६।। मगं गोत अग्रवाल सिह नगरी के ओ वासी। साहुमल को पूतु साहु भाऊ बुधि जुभासी ।