Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ ग्रन्थ सूची-पंचम भाग
८०५. गुटका सं०४ । पत्रसं० १६० । भाषा-हिन्दी । ले०काल्न स१६२६ । पुर्ण 1 वेष्टन सं० २७४ ।
विशेष-७५ पाठों का संग्रह है जिनमें अधिक स्तोत्र संग्रह हैं 1 कुछ विनती तथा साधारण कक्षाएँ हैं। कुछ उल्लेखनीय पाठ निम्न प्रकार हैं।
१. कलियुग कथा...-रचयिता, पाटे केशव, जान भूषण के उपदेश से । भाषा हिन्दी पद्य । २. कर्म हिडालना-रचयिता-हर्षकीति । भाषा-हिन्दी पद्य ।
पद
साधो छोडों कुमति अवेली, जाके मिथ्या संग सहेली। साधो लीज्यो मुमति अकेली, जाके समता संग सहेली। यह सात नरक....... यह अभयदायक ||१|| यह आगे कोध यह दररान निरमल जिन भाषित धर्म अपराने ।।२।। यह मौत तनो व्यवहार चित चैती ज्ञान संभार ।
यह कवल कीरति गति भाव भघि जीवन के मन भाव। पत्र १४७ मालीरासा
भन तरू सींच हो मालिया, तिह चरु चारु मुढाल । चिई हाली फल जय जवर, ते फल रात्रय काल रे । प्रानी त काहे न चेत रे ॥शा काल कहै मुनि मालिया, सींच जु माया गवार । देखतही को होठा होड है, मीतर नहीं कुछ सार रे।।
काया कारी हो कन करे बीज सुदेशन नोप । सील सुकरना मालिया, धरम कुरो होम रे प्राणी । गहि वैराग कुदाल की, खोदि सुचारत कूप । भाव रहट वृत्त बोलि छट कांधे त जूपरे ।।१७।।
धरम महा तरु विरघ सो, बहु विस्तार करेप । अविनामी सुख कारने, मोख महाफल देव रे । कहै जिनवास सुराखियो हसंत बीज सुभाल । मन वांछित फल लागती, फिल ही भव भव कालरे ॥२६।।
पत्र १६३ से १८१ तक पत्ती मे काट कर ले जाये गये है।