Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
View full book text
________________
विलास एवं संग्रह कृतियां ]
[ ६७६
बाल अवस्था मांहि वहुर दली में प्रायो ।
रमति मिले सुखदेव नाम चरणदास कहायो ।। इति ज्ञान सरोदो संपूर्ण सं० १८६६ को साल में बनायो । गुलोय में प्रतिलिपि हुई। ३. बारह भावना ४. अन्नात्रिम बंदना ५. बच पंजर स्तोत्र ६. श्रुतवोध टीका
त्रि ८. प्रस्ताबिक श्लोक १. दशलक्षरण मडल पूजा १०. फूटकर श्लोक ११, चतुर्गति नाटक--अलूराम ।
प्रादि भाग
अरिहंत नमू सिरनाय पुनि सिद्ध सकल सुखदाई । अनारज के गुन गाऊ पद उपाध्याय सिरनाऊ । सिरनाय सकल उपाधि नासन सर्व साधू नमू सदा । जिनराय भाषित धर्म प्रणम् विघन व्यापं न हूँ कदा । य परम मंगल रूप चवपद लोक में उत्तम यही । जब नटत नाटक जगत जीय केयक पर तक्षक सही।
शन्तिम
ई विधि जीव नटवा नाच्यो,
लख चौरासी र म राख्यौ । इक इक भेष न माही,
नाचि काल अनंत गुमाहि ।। बीत्या अनंतकाल नाचते उधमध्य पाताल में। ज्यों कर्म नाच नचावत जिय नट त्यों नचत बेहाल में । अव छांडि कर्म कुसंग वजिय नचि ज्ञान नृति बेहाल में ।
थिर रूप डालूराम गहि ज्यो होय सिव के सुख अम्ने । १२. बाईस परीषह हिन्दी। वि० लाल ने पार्श्वनाथ मन्दिर में प्रतिलिपि की थी।
६५०५. संग्रह स्थ-x। पत्र सं० २ । आ० ११४५ इञ्च । ले फाल: । पूर्ण । बेष्टन सं० १३१ । प्राप्ति स्थान दि० जैन मंदिर पाश्वनाथ चौगान ब'दी।
विशेष---चौदह कला, पच्चीस क्रिया आदि का वर्णन है।
६५०६. स्फुट पत्र संग्रह- ४ । पत्र सं० १५। पा० ८३४६३ च । भाषा-संस्कृत । विषय-सूगाषित । र०काल X । लेकालर । पुर्ण । वेष्टन सं० ३३८-१३२ । प्राप्ति स्थान-दि जैन मदिर कोटहियों का डूगरपुर ।