Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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४७२ ]
अन्तिम
रात्रि भोजन दोष दिखाया, दीनानाथ बताया जी |१||
श्रवल नाम तिहाँ रहवाया, दिन दिन तेज सवाया जी ॥२॥
[ प्रन्थ सूची- पचम भाग
श्रादिभाग-
धन २ जे नर ए व्रत पालइ नव २ नूर सदाशियां मालइ सतर सर तेवीस परस हे जद हीवडड हरती । मंगसिर यदि छट वर बुध दिवस चपई कीधी वसई जो ॥३॥
भोजन त्यागी टालइ जी ।
बिलसह सीख विसाल जी।
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श्री खरतर गल गगन दिदा श्री जिए हर सुरिंदा । चारि जिन लबधि मुगोंदा, उदया पूनिम चंदाजी । श्री सुमति हंस गुजगीरा जी। पद उवा र निसि दी भारी विसवासी। विमलनाथ जिनेश प्रसाद जाय तारा सुभसाद जी रिद्धि वृद्धि सदा धार संघ सकल चिर नंद जी अमरसेन जयसेन नरिदा थापर परमानंदा जी जयसेना राणी सुलकंदा जल साथी रवि पदाजी
शिरोमणि गुण गाया गया रद्द मनि माया जी । जीभ जनम सफली की काया मल्हि सुगुण महादा जी ॥४॥
सुबुधि बचिन निधि समृद्धि सुखसंपद श्रीकर। पासनाह परापणवतो व जस हब विसतार ॥ श्री गुरु निधि नहीं रमणी भोजन पाय । कहिस्यु शास्त्र विचार सु भगवंत म व उपाय ||
४६३८. रात्रिभोजनत्याग कथा -अ तसागर । पत्रसं० २२ । संस्कृत विषय कथा । १०फाल ४ ०काल सं० १७५८ उयेष्ठ बुदी ५ पूर्ण स्थान- मट्टारकीय दि० जैन मन्दिर अजमेर ।
०१०x४ इश्व | भाषावेष्टनसं० १४६२ प्राप्ति
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४६३९. राममशरसायन-केशराज पत्र० ९४ प्रा० १०३४४) इच प० | विषय - कथा | र०काल स० १६८० प्रासोज सुदी १३ । ले० काल सं० १७३० । ८५-९३ प्राप्ति स्थान दि० जैन मन्दिर बड़ा बीस पथी दौसा |
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भाषा - हिन्दी पूर्णे । वेष्टन सं
विशेष प्रारम्भ का फटा हुआ है व ११ प से प्रारम्भ किया जाता है। जंबूद्वीप क्षेत्र भरत मत लकानगरी थानिक निरमल । निरमल बानिक पुरी लंका द्वीप तर राक्षस जुङ । भजित जिनवर सराइ बारह भूप धन बाहन हुई । महारक्ष सुत पाटि थापी अजित स्वामी हाथिए । चरण पामी मोक्ष पद पर मुनिवर साथिए ।॥११॥