Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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कथा साहित्य ]
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४६१७. रविवारकथा - रद्दषु । पत्रसं० ४ । भाषा - अपभ्रंश | विषय - कथा । र० काल × । ले० काल X | पुस । वेष्टन सं० २० प्राप्ति स्थान - दि० जैन मन्दिर दीवानजी कामा ।
४६१८. रविवार प्रबन्ध- ० जिनदास पत्रसं० ५ । ग्रा० ११४४ इन्च भाषा - हिन्दी । विषय-कथा । २० काल X 1 ले० काल सं० १७३४ । पूर्ण वेन सं० ६८ प्राप्ति स्थान - दि० जैन प्रवाल मन्दिर उदयपुर ।
प्रशस्ति निम्न प्रकार है
संवत १७३४ वर्षे आसोज सुदी १० श्री राजनगरे श्री मूलचे श्री आदिनाथ चैत्यालये मट्टारक श्रीमतिस्तान्नाये मुनि श्री धर्म भूषण तत् शिष्य ग्रह बाजी लिखितं ब्रह्मरायमाण पठनायें |
४६१६. रविव्रतकथा - सुरेन्द्रकीर्ति विषय-कदा २० काल सं० १७४४ । ले०का X मंदिर बोरसली कोटा ।
आदिभाग
सं० १५० ६८५ इन्च भाषा - हिन्दी पद्य । पूर्ण वेटन सं० २५० प्राप्तिस्थान दि० जैन
प्रथम सुमरि जिनवर चोवीस चौदह वेपन मुनि ईस सुभक्ति गुरु देवेन्द्रकीति महन्त ॥
अन्तिम भाग
मेरो मन इक उपजी भाव, रविव्रत कथा करन को चाद । मैं तुक हीन जु अक्षर करों, तुम गन पर कवि नीकर्क धरों ||
सुरेन्द्रति पंडित
कहाँ रवि मुन रूप अनूप राब सुतु कवि सुधार लीजै, चूक मुथाक अब मह गोपाचल गाम नौ, सुभधानं बखानी । संवत विक्रम प गई, भलो सत्रह से जानी ॥ तो ऊपर चवालीस जेठ सुदी दत्तनी जानो चार जो मंगलवार हस्त नक्षत्र जु परियो तब । हरि विबुध कथा सुरेन्दर रचना सुव्रत पुनजु अनन्त ||
४६२०. रविव्रतकथा विद्यासागर पत्र० ४ कथा । १० काल X | लेफान X पूर्ण वेष्टन ०३६-१६८
मेमिनाथ टोडारायसिंह (टोंक)
प्रारम्भ
० १४४ इथ भाषा हिन्दी । विषयप्राप्ति स्थान दि० जैन मन्दिर
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पंचम गुरु पद नमी, मन धरी जिनवाणी ।
व्रत महिमा कहु प्रसार शुभ आणंद प्राणी ॥ सूरज दिसि सोहे सुदेश, काश्मीर मनोहार धारणारसी तेह मध्य सार नगर उदार ॥१॥ न्यायवंत भरपति विहा सप्तांगे सोहे । पुस्याल नाम सोमणो गुणी जनमन मोहे ||
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