Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
View full book text
________________
४६२ ॥
[ ग्रन्थ सूची-पंचम भाग
४५५३. प्रियमेलक चौपई... X । पत्रसं०६०। प्रा० ५४४ इञ्च | भाषा-हिन्दी। विषय-कया । र. काल x ले०काल x | अपूरण । वेष्टन सं० ३७४ । प्राप्ति स्थान—संभवनाथ दि. जन मन्दिर उदयपुर ।
विशेष—गुटका है। दान कथा में प्रियमेलक का नाम पाया है एक दान कथा और भी दी हुई है।
४५५४. प्रियमेलक चौपई-समयसुन्दर । पत्र सं० ६ । प्रा० १.१४४३ इञ्च । भाषाराजस्थानी (प)। विषय-कथा। र० कालस० १६७२। ले०काल स. १६५७ । पूर्ण । वेष्टन सं० १३ । प्राप्ति स्थान—दि जैन मंदिर तेरहपंथी दौसा। मंगलाचरण--
प्रणम् सदगुरनाम सरसी शामली। दान धरम दी पाप, कहिसि कथा कौतक भणी । घरमा माहि प्रघाना, देतां रूडा दीसियइं। दीधन बरसी दान, अरिहंत दीक्षा अबसरई ।।
सोरठिया दोहा
उत्तम पात्र तउ एह, साधन इंदी जर सूझ त । सायिइ लाछि अच्छेह, अटलिक दान अउ पापियइ ।। अति मीठा आहार. सरवरा देज्यो साधना है। सुख हिस्थत श्रीकार, फल बीजा सरिषा फलई ॥४॥ प्रथिवी मांहि प्रसिद्ध, सुपिइ दान कथा सदा । प्रियमेलक अप्रसिद्ध, सरस घरण सम्बन्ध छई। शुरणउ मिखाई जड़ सेवए सुरणुता जेउ बस्यई। उमाण सहि अगलित्र के मुझमचनि को रस नहीं।
x राग यमराजी ढालछठी जलालीयानीतिरा अवसरि तर सीथ दुरि, रूपवंती करइ अरदास । जीवन मोराजी कुली री काया तावड पाकर उरि ।
पापिणी लागी मुनई प्यास ॥१॥ पाणीरि पापड हुँ तरसी थई खिरण एक मंइ नख माय जीण।
कंठ सूकइ काया तपइरि जीभई बोल्यउ न जाय ।।
दूहा
कथा बाट मूकी विहर कातरहितकुमार । नगर कुमर ते निरखता निरखी त्रिए द्वे नारि ।। के इक दिन रहता थका विस्तरी सगलइ बाद । कुमरी क्रिया विष तपस्या कर परमारथ न प्रीछना।। बोल एक बोल नहीं दिव्य रूप वृष देह । पन्न पान को प्राणि घई नउते खापड तेह ।।