Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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पत्र सं० १ पत्र [सं० १
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४३२५. चंदराजानी हाल- मोहन - मोहन ० १३x४ इस भाषा हिन्दी । वे० काल X पूर्ण । बेष्टन सं० २०६६६० प्राप्ति स्थान दि० जैन
कथा साहित्य ]
विषय-कथा २० काल X
संभवनाथ मन्दिर उदयपुर ।
४३२६. चंद्रप्रभ स्वामिनो विवाह-म० नरेन्द्रकीति सं० २४ घा० ११४४३ भाषा – रजस्थानी | विषय-कथा २० काल सं० १६०२ | ले०काल x । पूर्ण । वेष्टन सं० ४६ । प्राप्ति स्थान- वि० जैन मन्दिर बोरसी कोटा |
प्रादि भाग
मध्य भाग
प्रतिम भाग
सकल जिनेश्वर भारती
मीने गणधर लहीय पसाउ । सोए श्री चन्द्रप्रभ कर नमित नरामर गाय ते बीबासोए ।। १॥
बइने बोलावे मात लक्षमणा देवी मात उठोरे जिनेश्वर कहिए एक बात ||१|| सामीरे देखीजें रे पुत्र साहिजे सदा पवित्र । रजलु' भदासे व निरमल गात्र ।
विक्रमराव पछी संवत् सोल वय सवत्सर जाण बंगाख यदी मली सप्तमी दिन सोमवार सुप्रमाल गुजरदेश सोहमलो महीसान नगर मुसार विवाद ल र मगरली आदिश्वर भवन मार श्री मूलसंघ गपति शुभचन्द्र भट्टारक सार । तत्पदकमल दिवाकर, श्री सुमतिकीरति भवतार ॥ गुरु भ्राता तस जोंगइ श्री सकलभूषण सुरी देव नरेन्द्रकीरती सुरीवर कहे, कर जोडि ते पद सेव । जे नरनारी भावें सूर, भगेंद सु यह गीत । ते पद पायें साम्वता श्री चन्द्रप्रतीति ॥
इति श्री चन्द्रप्रभ स्वामिनो विवाह संपूर्ण ब्रह्म श्री गोतम लखीतं
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४३२७. चन्दनमलयागिरी चौपई-भद्रसेन पत्रसं० २० कथा । १० काल १७६ीं शताब्दी । ले० काल स० १७९० जेठ सुदी १३ पूर्ण स्थान- दि० जैन मन्दिर कोटडियों का दुगरपुर
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। पठना ब्रह्म श्री रूपचन्दजी |
भाषा हिन्दी पद्य विषयवेष्टन सं० १/१ प्राप्ति
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प्रशस्ति- संवत् १७८० मासोमा जेठ मासे शुक्ल पक्षे त्रयोदाम्य तिथी भौमवासरे इर्द मुस्तक निखापितं कारजा नगर मध्ये श्री चन्द्रम अंथालये लेखक पाठकको शुभं
प्रति सचित्र है तथा उसमें निम्न चित्र हैं