Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ प्रन्थ सूची-पंचम भाग
. यादि अंत भाग निम्न प्रकार है :-- -औनमः सिद्धम्प । बारा पारा चौपई लिख्यते । प्रथम वृषभ जिन निस्तबूजे जुग प्रादि सार । भव एकादश कजला भव्य उतारण पार ।।?।। इह प्रथम जिनंद दुख दावानल कंद भव्यकज बिकाशनचन्द सुधकाथिव धारणाचन्द ।। २ ।। सरस्वती निवलीनम जेह ज्ञान अपार । ममा जेथीफली कविजन लाभ सार ॥३॥ 'श्री मूलसंघ सहामणों सरस्वतीगच्छे सार ।
बलारकर शूभगरण भण्यों थी कूदक्द सारि ।। ४ ।। इस से प्रागे भ. पद्मनंदि, सकलकीति भुवनकीति, ज्ञानभूषण, विजयकीति शुभचन्द्र, सुमतिकीति गुरषकीति की परम्परा और उसके बाद
वादीभूषण नेह अनुक्रमि रामकीरतिज' सार । पयनदि निवलीस्तव चेल रहित सुखकार । तेहना शिष्यज उजलों करि मार मार विचार । ब्रह्मरूपजी नामिभण्यों सूरणज्यों सज्जनसार ।। समंतभद्र देमेज कवि गुणभद्र गुराधार
वेहनागुण मनाहि धरि कवि बोलु सुखकार । अन्तिम
चध्दसूरज ग्रह तारा जारण रामयश नाक निर्माण रसार लगिये चोपे रहो आसांबर कंठिकरी कहो ।।६३ ।। सतर उक्त बीस हा सही सात्री सत्रण सिचोए कहीं
ब्रह्मरूपजी कहे प्रमाण
सुरणतां भरता पंचकल्यारा ।। इति महाचौपई बंधे ब्रह्मरूपजी विरबिसे अष्टकाल स्वरूप कथानाम तृतीय उल्लासः । इति बारा पारा महाचौपई बंधे चमाप्तः । .
स्वयं पटनाय स्वयं कृतं स्वयं लिखितं । महिसारणा नगर आदि जिन चल्यालये कृता । इसमें कुल तीन उल्लास है
१. कालत्रय स्वरूप २. चतुर्थ काल वर्णन स्वरूप
३. अष्टकाल स्वरूप बान । ३६६१. भद्रवाह चरित्र-रत्ननंदि । पत्रसं० २४ । प्रा० ६४५३ इञ्च । भाषा-संकृत । विषय-चरित्र । र०कालxले०काल सं० १८४३ । पुर्ण । वेष्टन सं० १२३३ । प्राप्ति स्थानभट्टारकीय दि. जैन मन्दिर अजमेर ।