Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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करण शुतां परितः ।
विशेष-- सग्रही श्रमरदास ने प्रतिलिपि की थी। कथाकोष में से कथा उद्धत है। ४०५७. श्रीपाल चरित्र - X १०४१०८६ इंच भाषा - हिन्दी गद्य विषय- चरित्र २० काल X ने० काल सं० १९९२ भादवा सुदी १ प्रपूर्ण वेष्टन सं० ४८१ । प्राप्ति स्थान दि० जैन मंदिर लश्कर जयपुर ।
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विशेष रिचन्द विदायका ने जयपुर में प्रतिलिपि की थी।
४०५८. श्रीपाल चरित्र-- X | पत्र सं० विषम चरित्र र काल X | ले० काल X। पूर्ण नदी बूंदी
३५ ॥ या० १० X ७६ भाषा - हिन्दी गद्य । वेष्टन सं० ३८ प्राप्ति स्थान- दि० जैन मंदिर
४०५६. श्रीपाल चरित्र ४ । पत्र सं० ५८ । भाषा - हिन्दी | विषय-जीवन चरित्र । २० काल X | ले० काल सं० १९२६ । पूर्ण वेष्टन सं० ५७६ । प्राप्ति स्थान- दि० जैन पंचायती मंदिर भरतपुर ।
४०६०. श्रीपाल चरित्र - x | पत्र [सं०] ३६ । प्रा० विषय- चरित्र । २० काल । ले० काल सं० १६२२ वा बुदी ५ स्थान- वि० जैन भवनाथ मंदिर उदयपुर ।
विशेष - कुल पद्य स ० ११११ है ।
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संवत् अठारे सतस सावण मास जयंग | कीसन पक्ष की सप्तमी रवीदार सुभचंच ।। ११०८ ॥ सकल दीपाल
तादिन पूरण जिस पर पोपाप्रो दुधजन मन हरख विशाल ॥११०२ ।। नगर उदयपुर रूपड़ो सकल सुखां की धाम |
तहां जिन मन्दिर सोनही नानाविव अभिराम ।१११० ।।
ताहा पारिस जिनराज को अन्दर प्र सोहंत
X ५ इव । भाषा - हिन्दी । पूर्ण वे० सं० २३० प्राप्ति
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तहां लिखो ए ग्रन्थ ही बरतो जग जयवंत ।। ११११ । इति श्रीपाल कथा संपूर्ण ।
४०६२. श्रीपाल प्रबंध चतुष्पदी ०कास सं० १९८९ ॥ पूर्णं । वेष्टन सं० ६८७
नगर मीटर मध्ये श्री रिखबदेवजी के मन्दिर श्रीमत् काष्टाच नंदितगच्छे विद्यागले प्राचार्य श्री रामसेन तत्पट्टे श्री विजयसेस तत्पदृट्टे श्री भ० श्री हेमन्द्रजीत भ० श्री क्षेमकीति तत् सिष्य पं.
मत्राला विश्व सं० १९२३ साल खुदी ५।
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प्रारम्भ में गौत्तम स्वामी का लक्ष्मीस्तोत्र दिया है। आगे श्रीपाल चरित्र भी है। प्रारम्भ का पत्र नहीं है।
४०६१. श्रीपाल चरित्रलाल पत्र सं० १४२ । भाषा - हिन्दी विषय र २० काल सं०] १८३० । काल सं० १५५१ पू वेष्टन ०६८ प्राप्ति स्थान दि० जैन पंचायती मन्दिर
भरतपुर ।
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पत्रसं० ४ भाषा - हिन्दी विषय X | २० काल X । प्राप्ति स्थान दि० जैन पंचायती मन्दिर भरतपुर ।