Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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विशेष – कल्दार में सं० १९६२ में लिया गया था। ४१०५. असिक प्रबन्ध कल्याणकीति । पत्र सं० ५७ । भाषा - हिन्दी पद्य विषय-चरित्र । २०काल सं० १७७५ धासोज सुदी ३ चिंत वदी १३ । पूर्ण वेष्टन सं० १४४ प्राप्ति स्थान -- दि० जैन मन्दिर फतेहपुर शेखावाटी (सीकर)
प्रा० १० x ६६ । ले०काल से १६२०
प्रादिभाग---
ॐ नमः सिद्धेभ्यः -- श्री वृषभाय नमः |
दोहा कर सन्मति शुभ मती चोबीस भी जिनराम ।
अमर खचरनि करि सेवित पाय || १॥
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से जीन चरण कमलनसी हृदय कमल बरी नेह
जिन मूल कमल भी उपति न गुण रत्नाकर गौतम मुनि ते मध्यि केता ग्रही रख श्री मूणसच उदयाचल,
वाग्वादिनी गु गेहू ॥२॥ वयण रयल अनेक । प्रबंध हार विवेक १॥३॥ प्रभाचंद्र रविराय ।
श्री
तस पद कमल दीवाकरु नमू श्री पद्मनंदी सुखकार । यादिवारण केसरि अकलंक एह अवतार ||५|| नौज गुरु देव कीरति मुनि प्रणम् चित धर नेह ॥
मंडलीक महा शीक नो प्रबन्ध र नमी देवकीरति गुरु पाय | जिन कल्याण कीरति पूरी बरे रच्यो रे ! ए कि गुण मरिहार | जिन वागड विमल देश शोभते रे || तिहाँ कोट नयर सुखकार || जिन वनपति विमल से धरणा रे ॥ 'धनवंत चतुर दयाल ॥ जिन० जिन० तिहों आदि जिन भवन सोहाम
रे
रामकीरति शुभकाय ||४||
गुण गेहु ॥ ६॥
भारि ॥ ९ ॥ लाल लो० ॥ भावि० ॥
लाल सो ॥
भावि० ।। १०
लाल लो ||
॥ भावि० ॥
[ प्रन्थ सूची- पंचम माग
1 लाख लो |
तशिका तोरण विशाल | जिन भावि ॥ ११ ॥ उत्सव होथि गावि माननी रे ॥ लाज सो ॥
बाजे ढोल मृदंग कंशल | जिन० ॥ नावि० प्रादर ब्रह्मसिंघ जी तरोरे ॥ लाल लो ॥ तहां प्रबंध रखो गुणमाल ॥ जिन० ॥ भावि० ॥ १२ ॥ संतत सतर पंचोतरि २ ।। लाल सो० ॥
प्रासो खुदि भीज रथि ॥ जिन० भावि० ॥
ए सोमलि गाय लिखि भावसु रे । लाल लो ॥
ते तह मंगलाचार | जिनदेवरे भावि जिन पद्मनाम जान्यो । १३॥