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________________ ४०६ ] विशेष – कल्दार में सं० १९६२ में लिया गया था। ४१०५. असिक प्रबन्ध कल्याणकीति । पत्र सं० ५७ । भाषा - हिन्दी पद्य विषय-चरित्र । २०काल सं० १७७५ धासोज सुदी ३ चिंत वदी १३ । पूर्ण वेष्टन सं० १४४ प्राप्ति स्थान -- दि० जैन मन्दिर फतेहपुर शेखावाटी (सीकर) प्रा० १० x ६६ । ले०काल से १६२० प्रादिभाग--- ॐ नमः सिद्धेभ्यः -- श्री वृषभाय नमः | दोहा कर सन्मति शुभ मती चोबीस भी जिनराम । अमर खचरनि करि सेवित पाय || १॥ 1 - wwP से जीन चरण कमलनसी हृदय कमल बरी नेह जिन मूल कमल भी उपति न गुण रत्नाकर गौतम मुनि ते मध्यि केता ग्रही रख श्री मूणसच उदयाचल, वाग्वादिनी गु गेहू ॥२॥ वयण रयल अनेक । प्रबंध हार विवेक १॥३॥ प्रभाचंद्र रविराय । श्री तस पद कमल दीवाकरु नमू श्री पद्मनंदी सुखकार । यादिवारण केसरि अकलंक एह अवतार ||५|| नौज गुरु देव कीरति मुनि प्रणम् चित धर नेह ॥ मंडलीक महा शीक नो प्रबन्ध र नमी देवकीरति गुरु पाय | जिन कल्याण कीरति पूरी बरे रच्यो रे ! ए कि गुण मरिहार | जिन वागड विमल देश शोभते रे || तिहाँ कोट नयर सुखकार || जिन वनपति विमल से धरणा रे ॥ 'धनवंत चतुर दयाल ॥ जिन० जिन० तिहों आदि जिन भवन सोहाम रे रामकीरति शुभकाय ||४|| गुण गेहु ॥ ६॥ भारि ॥ ९ ॥ लाल लो० ॥ भावि० ॥ लाल सो ॥ भावि० ।। १० लाल लो || ॥ भावि० ॥ [ प्रन्थ सूची- पंचम माग 1 लाख लो | तशिका तोरण विशाल | जिन भावि ॥ ११ ॥ उत्सव होथि गावि माननी रे ॥ लाज सो ॥ बाजे ढोल मृदंग कंशल | जिन० ॥ नावि० प्रादर ब्रह्मसिंघ जी तरोरे ॥ लाल लो ॥ तहां प्रबंध रखो गुणमाल ॥ जिन० ॥ भावि० ॥ १२ ॥ संतत सतर पंचोतरि २ ।। लाल सो० ॥ प्रासो खुदि भीज रथि ॥ जिन० भावि० ॥ ए सोमलि गाय लिखि भावसु रे । लाल लो ॥ ते तह मंगलाचार | जिनदेवरे भावि जिन पद्मनाम जान्यो । १३॥
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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