Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
View full book text
________________
३६० ]
[ ग्रन्थ सूची- पंथम भाग
३६५७. प्रति सं० ६ एस० १२५ ० १० X ४ई इस ले० का ० १०२६ पौष वदी ११ । पूर्ण वेष्टन पं० २५५ प्राप्ति स्थान- भट्टारकीय दि० जैन मन्दिर अजमेर । विशेष – ओमराज गोदीका के पठनार्थ प्रतिलिपि हुई थी।
३२५५ प्रति सं० ७ पत्र सं० १५३ ० १०४३
सं० १००/ ४९ । प्राप्ति स्थान- दि० जैन मन्दिर कोटडियों का दुगरपुर ।
प्रशस्ति - संवत् १६६० वर्षे आपा सुदि १२ शुक्र सागवाड़ा शुभस्थाने श्री आदिनाथ चैत्यालये श्री मूलचे सरस्वतीच्छे बलात्कार श्री कू वकुं दाचायन्विये मंडलाचार्य श्री गुणचंद्र तत्पड़ मंडलाचार्य श्री जिनचंद्र मं० श्री सकलचन्द तदाम्नाये स्थविरामाये श्री मविभूषण प्राचार्य श्री हेमकीति तत् विष् वाई कनकाए बारसं चौतीस श्री शांतिनाथ पुराण ब्र० श्री भोजा ने लिखापि दत्तं ।
ले०काल १६६० पूर्ण
३६५६. प्रति सं० ८ पत्र सं० ६-१६६ : ० ११x४ ३ ४ ५ ६ 1 ले० कालसं० १९१० । पूर्ण हुन ०३७२।१५ प्राप्ति स्थान संभवनाथ दि० जैन मन्दिर उदयपुर।
विशेष प्रशस्ति निम्न प्रकार है
E
१६१० वर्ष शाके १४७५ प्रवर्तमाने मेदामध्ये जालस्थाने मादीस्वर मेस्यालये लेखक सहजी लिलत श्री मूलचे सरस्वती म बलात्कारले कुदकुदाचार्यान्विये भट्टारक श्री पद्मनंदि तत्पट्ट म० श्री सकलकीतितरपट्टे भवनकीति तत्पट्टे भट्टारक श्री ज्ञानभूषण तत्पट्टे श्री विजयकीति तत्पट्टे म० श्री शुभचन्द्र दाम्नाये बहा श्री जिदास तत्र पाट व० श्री शांतिदास तत्पाट ६० श्री हंसा तस्य शिष्या बाई धनवती बाई श्री सतमती परकमल मधुनतावस्था चेली बाई धनवती कर्मार्थ पहना इदं पुस्तकं ति ।
११
३६६०. प्रति सं० । पत्र सं०] १४४ वेष्टन ० ४१६ प्राप्ति स्थान- सम्भवनाच दि० जैन प्रशस्ति १५१४ वर्षे भादवा सुदी बजे श्री मूलचे भी गिरिपुरे श्री आदिनाथ चैत्यालये जातीय सरजा गोत्रे हरा गोगा भार्या मारावयदे तस्य पुत्री रमा तस्य जमाई गांधीवाद्या भार्या गावी श्री जातिनाथ चरित्र विखाप्य दतं सकनकी तप भ० श्री भुवनकीत तत्प गुणकीर्ति भट्टारक श्री पद्मनंदिभि बं० प्रमरायं प्रदत्त' पुस्तकमिदं ।
हबह
1
कर्म क्षया शुभं भवतु कुंदकुंदाचार्यान्विय भट्टारक श्री भ० ज्ञानभूषण तत् शिष्य चाचार्य श्री नेमिचन्द्र श्री
सु
किनारों पर दीमक लग गई है किन्तु ग्रन्थ का लिखा हुआ माग सुरक्षित है। ३६६१. प्रतिसं० १०
०
११ X ४ इस ले०कास सं० १५६४ । पूर्ण । मंदिर उदयपुर ।
० ४० से १२० १३ X ५ इन्च ले० काल X प्रपूर्ण
[सं०] १७२ प्राप्ति स्थान-सम्भवनाथ दि० जैन मंदिर उदयपुर । विशेष प्रति प्राचीन है।
३६६२. प्र०११ पत्रसं० १९९० ११५ च । वेमसं०] १५१ प्राप्ति स्थान दि० जैन सवाल मंदिर उदयपुर । विशेष – ग्रन्थ में १६ अधिकार हैं । ग्रन्थाग्रन्थ स ० ४३७५ है ।
से० काल x । पूर्ण
३६६३. प्रति सं० १२० १० १४० प्रा० १०४ इले० काल पूर्ण वेष्टन सं०११० प्राप्ति स्थान दि० जैन मंदिर आदिनाथ बूंदी।