Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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पुराण साहित्य ]
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२८४६. प्रति सं० २ । प० ६० ॥ श्र० ११५ । ले०कास सं० १८३२ चैत्र सुदी १३ । सं० १७३ । पू । प्राप्ति स्थान - वि० जैन मं० लक्कर, जयपुर ।
विशेष – सवाई जयपुर नगर में भानूराम साहने प्रतिलिपि की थी ।
२८४७. चन्द्रप्रभपुराण – जिनेन्द्रभूषण | पत्रसं० २४ । प्रा० १२३ हिन्दी | विषय - पुराण | २०काल सयत १८४६ । ले० काल X पूर्ण । वेष्टन सं० ६ दि० जैन पंचायती मंदिर बयाना |
विशेष—इटावा में ग्रंथ रचना की गयी थी । ग्रंथ का यदि अंत भाग निम्न प्रकार है
प्रारंभ -- चिदानंद भगवान सब शिव सुख के दातार ।
श्री चन्द्रप्रभु नाम है तिन पुराण सुख खार ॥१॥ जिनके नाम प्रताप से कहे सकल जंजाल । ते चन्द्रप्रभ नाम है करो *पुर पार ॥२
अ ंतिम पाठ
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मूल संघ हैं मैं सरस्वति गच्छ ज्यू ।
बलात्कार गम्य को महाराज परल ज्यू । शामनाय कहै बीच कुन्दकुन्द ज्यू ।
कुन्दकुन्द मुनराज जानवर आपज्यू ।।२७।। भट्टारक गुणकार जगतभूषण भ विश्वभूषण सुभ प प्रान पूरन उथे । तिनके पत्र उद्धार देवेन्द्रभूषण कहे । सुरेन्द्रभूषण मुनराज भट्टारक पद लट्टे । जिनेन्द्र भूषण लघु शिष्य बुद्धिवरहीन ज्यू' । कह्यी पुराण सुज्ञान पुरा पद जान ज्यू संवत ठरायै इकतालीस खामले । सावन मास पवित्र भक्ति को गले ॥ सुदि च ज पुनीत चन्द्र रविवार है। पूरन पुण्य पुरा महा मुखदाई है । शहर इटाको मली तो बैठक भई । श्रावक गुन संयुक्त बुद्धि पूरन लई ॥
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इसके श्रापद्य और है जिनमें कोई विशेष परिचय नहीं है ।
७३ इञ्च । भाषाप्राप्ति स्थान
इति श्री हर्षसागरस्यात्मज नट्टारक श्री जिनेन्द्रभूषण विरचिते चन्द्रप्रभु पुराणे चन्द्रप्रभु स्वाभी निर्धारण गमनो नाम षष्टम सर्गः । श्लोक सं. प्रमाण १०६१ ।
मध्य भाग
सब रितु के फल ले आया लिन भेंट करी मुखदायी । राजा मुनि मनि हरवावं तब आनन्द भोर बजावै ॥ २४ ॥