Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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अध्यात्म चितन एवं योग शास्त्र ]
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२११०. परमात्मप्रकाश टीका-ब्राह्मदेव । पत्र सं० १७५ । ग्रा० १२ x ८ इञ्च 1 भाषाअपभ्रंश संस्कृत एवं हिन्दी (गद्य) । विषय---अध्यात्म । र० काल ४। लेकाल सं० १९६१ द्वि० चत्र सुदी ४ । पूर्ण । वेष्टन सं० ४-१७५ । प्राप्ति स्थान-दि० जैन मंदिर बड़ा बीसपंथी दौसा ।
विशेष-दौलतराम की हिन्दी टीका सहित है । देवगिरी निवासी दचन्द लुहाडिया ने दौसा में प्रतिलिपि की थी।
२१११. परमात्मप्रकाश टीका-४ । पत्रसं० १८० । आ०४३ इञ्च । भाषासंस्कृत 1 विषय--अध्यात्म । २० कालX । ले०काल X । बेष्टन सं० १२६२ । प्राप्ति स्थान-मट्टारकीय दि. जैन मन्दिर, अजमेर ।
विशेष-लेखक प्रशस्ति अति प्राचीन हैं । अक्षर मिट गये हैं ।
२११२. परमात्मप्रकाश टीका-व. जीवराज । पत्रसं० ३५ । प्रा० ११४२ इञ्च । र० काल सं० १७६२ । ले०काल सं० १७६२ माघ सुदी ५ । पूर्ण । वेषन सं० ५३४। प्राप्ति स्थान- भट्टारकीय वि० जैन मन्दिर अजमेर ।
विशेष-बखतराम गोधा में चाटस में प्रतिलिपि की थी । टीका का नाम वालाधबोध टीका है। अन्तिम प्रशस्ति
श्रावक कुल मोट मुजस, खण्डेलवाल बखारण । साहबड़ा साखा बडी, भीम जीव कुल भाग ।।१।। राज ससु सुत रेखजी, पुण्यवंत मुप्रमाण । ताको कुल सिंगार, सुत जीवराज सुवजाण ॥२।। पुर नोलाही में प्रसिद्ध राज सभा को रूप 1 जीवराज जिन धर्म में, समपातमरूप ॥३२॥ करि प्रादर बहु तिन करो, श्री भ्रमसी उयझाव । परमात्म परकास को, वात्तिक देह बनाय 11011 परमात्म परकास मो सास्त्र अथाह समुद्र । मेठा अर्थ गम्भीर भगिण, दल अग्यान लिद्र ।।।। सुगुरु ग्यान अंकक सजे पाये कीये प्रतद्य । अथं रत्न घरि जतन, देयो पराली गद्य ।।६।। सतरंस बासटिसम, पखवज सणसार। परमात्म परकास को, वानिक कह्यो बिचारि |७|| कीरति सुदर सुभकला, चिरंजीय जीवराज ।। थी जिन सासन सानधे, सुधर्म सुभिस्वसुराज 11|| इति श्री योगीन्दुदेव, विरचिते तीनसौपैतालीस. 'दोहा पद प्रमाण, परमात्म प्रकास को बालाबोध । सम्पूर्ण संवत् १७६२ वर्षे माह दी ५ दसकस बखतराम गोधा चाटम मध्ये लिखितं ।।