Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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[ पुरुशार्थसिद्धय पाय
PRANAMAA
जीव ऐंजिन है, बिना ऐंजिनके वह चल नहीं सकती; घड़ीका जीव चाबी है, विना चाबी दिये बह चल नहीं सकती, तत्काल उत्पन्न बालकका वाह्य जीव दूध है, बिना दूध के वह जी नहीं सकता, (जीवसे यहां प्रयोजन वस्तुके अन्तःसारका है ) उसीप्रकार श्रीआचार्य महाराजने अनेकांतको परमागम जैनसिद्धान्तका जीव बताया है । अनेकांतसे ही उसमें प्रमाणता आती है।
इसी अनेकांत-निरूपणाको छोड़कर जैनमतके सिवा अन्य सभी मतवाले वस्तुके एक एक अंशको ही वस्तु मानकर अपनी अपनी बातको पुष्ट करनेकी चेष्टा करते हैं, वह उनकी चेष्टा ऐसी ही है जैसी कि जन्म के अंधे पुरुषोंकी हाथीकी पहचानमें चेष्टा होती है । जन्मके अंधे पुरुष हाथीका आकार एवं उसका स्वरूप जाननेके लिये स्पर्शनसे काम लेते हैं; जो हाथीका पैर पकड़ लेता है, वह पैर ही को हाथी मान लेता है, पूछ पकड़नेवाला पूंछको ही हाथी मान बैठता है; सूड पकड़नेवाला सूडको ही हाथी समझ बैठता है, इसीप्रकार कान , पेट आदि भिन्न भिन्न हाथीके अवयवोंको जन्मान्ध पुरुष हाथी समझते हैं, परंतु वह उनका समझना हाथीका स्वरूप नहीं है। समस्त अवयवोंका समूह ही हाथीका स्वरूप है। इस बातका परिज्ञान नेत्रवाला ही कर सकता है। इसीप्रकार एकांतवादसे वस्तुकी सिद्धि करनेवाले वस्तुके एक धर्मको ही वस्तु समझते हैं, परन्तु वस्तु अनेकधर्मात्मक है इस बातको अनेकांतवादी जैनधर्म प्रगट करता है; यही बात दूसरे विशेषणसे सिद्ध होती है।
__ पदार्थ अनेक धोका पुज होनेसे नयविवक्षाएँ भी उतनी ही हैं। उन समस्त धोका विवेचन भिन्न भिन्न नयविवक्षाओंसे विवक्षित होनेके
किमी किसी प्रतिमें "परमागमस्य बीज" ऐसा पाठ है। वह भी ठीक है, उसका ऐसा अर्थ है कि अनेकांत परमागम का कारण है, अर्थात् जैनागममें प्रमाणता आनेका कारण अनेकांत है। बीज और जोव दोनों पाट ठीक हैं, हमारी दृष्टिमें 'जीव' पाठ अधिक महत्वका है, बिना अनेकांतके आगम निर्जीव ही
है, इस बातको 'जीव' पाठ प्रगट करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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