Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुण्यास्रवकथाकोशम्
[१-६ पतितां कुसुमपुरे कुसुमदत्तमालाकारेण दृष्ट्वा स्वगृहमानीय स्ववनिताकुसुममालायाः समर्पिता। तया च पनद्रहे लब्धेति पद्मावतीसंशया वर्धिता । युवतिर्जाता । केनचिद्दन्तिवाहनस्य तत्स्वरूपं कथितम् । तेन तत्र गत्वा तद्रूपं दृष्टा मालाकारः पृष्टः- सत्यं कथय कस्येयं पुत्रीति । तेन तदने निक्षिप्ता मञ्जूषा । तत्रस्थितनामाङ्कितमुद्रादिकं वोच्य तजाति शात्वा परिणीता। स्वपुरमानोतातिवल्लभा जाता। कियत्काले गते सत्पिता स्वशिरसि पलितमालोक्य तस्मै राज्यं दत्त्वा तपसा दिवं गतः।
पद्मावती चतुर्थस्नानानन्तरं स्ववल्लभेन सह सुप्ता स्वप्ने सिंहगजादित्यान् स्वप्नानद्राक्षीत् । राज्ञः स्वप्ने निरूपिते तेनोक्तम्-सिंहदर्शनात्प्रतापी गजदर्शनात्क्षत्रियमुख्यो रविदर्शनात्प्रजाम्भोजसुखाकरः पुत्रो भविष्यतीति। संतुष्टा सुखेन स्थिता । इतस्तेरपुरे स गोपालः सशैवलद्रहे तरितुं प्रविष्टः सन् शेवालेन वेष्टितो मृत्वा पद्मावतीगर्भे स्थितः। तन्मृतिं परिज्ञाय संस्कार्य श्रेष्ठी सुगुप्तमुनिनिकटे तपसा दिवं गतः। इतः पद्मावत्या दोहलको जातः । कथम् । मेघाडम्बरे चपलाकुले वृष्टौ सत्यां स्वयमङ्कुशं गृहीत्वा पुरुषवेषेण द्विपं चटित्वा पृष्ठे राजानं की पुत्री हुई । उसे कुदिनमें ( अशुभ मुहूर्तमें ) उत्पन्न हुई जानकर अपने नामकी मुद्रिका आदिके साथ पेटीमें रखा और यमुनाके प्रवाहमें बहा दिया था । वह गंगाके प्रवाहमें पड़कर पद्मद्रहमें जा गिरी। उसे देखकर कुसुमपुरमें रहनेवाला कुसुमदत्त नामक माली अपने घरपर ले आया और अपनी पत्नी कुसुममालाको सौंप दिया। वह चूँकि पद्मद्रहमें प्राप्त हुई थी अतएव कुसुममालाने उसको पद्मावती नाम रखकर वृद्धिंगत किया । वह कुछ समयमें युवती हो गई । किसी मनुष्यने दन्तिवाहन राजासे उसके रूपकी चर्चा की। राजाने वहाँ जाकर उसके सुन्दर रूपको देखा । उसने मालीसे पूछा कि यह पुत्री किसकी है, सत्य बतलाओ। मालीने राजाके सामने वह पेटी रख दी। उसने पेटीमें स्थित नामांकित मुद्रिका आदिको देखकर और इससे उसके जन्मविषयक वृत्तान्तको जानकर उसके साथ विवाह कर लिया। वह उसे अपने नगरमें ले आया। उक्त पद्मावती राजाके लिए अतिशय प्यारी हुई। कुछ समय बीतनेपर दन्तिवाहनका पिता अपने शिरपर श्वेत बालको देखकर विरक्त हो गया। उसने दन्तिवाहनको राज्य देकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली । वह मरकर तपके प्रभावसे स्वर्गमें जाकर देव हुआ।
पद्मावती चतुर्थस्नानके पश्चात् अपने पतिके साथ सोयी थी। उसने स्वप्नमें सिंह, हाथी और सूर्यको देखा। तत्पश्चात् उसने इन स्वप्नोंके सम्बन्धमें राजासे निवेदन किया। राजाने कहा-देवि ! तेरे सिंहके देखनेसे प्रतापी, हाथीके अवलोकनसे क्षत्रियोंमें मुख्य और सूर्यके दर्शनसे प्रजाजनोंरूप कमलोंको प्रफुल्लित करनेवाला पुत्र होगा। इसको सुनकर पद्मावती सन्तुष्ट होकर सुखपूर्वक स्थित हुई । इधर तेरपुरमें वह धनदत्त ग्वाला तैरनेके लिए काई सहित तालाबके भीतर प्रविष्ट हुआ। वह काईसे वेष्टित होकर मृत्युको प्राप्त होता हुआ पद्मावतीके गर्भ में आकर स्थित हुआ । ग्वालाके मरणको जानकर वसुमित्र सेठने उसके मृत शरीरका दाह-संस्कार किया। तत्पश्चात् वह सुगुप्त मुनिके पासमें दीक्षित होकर तपके प्रभावसे स्वर्गको प्राप्त हुआ। उधर पद्मावतीको यह दोहल ( सातवें मासमें होनेवाली इच्छा ) उत्पन्न हुआ कि जब आकाश मेघोंसे व्याप्त हो, बिजली चमक रही हो, तथा वृष्टि भी हो रही हो; ऐसे समयमें मैं स्वयं अंकुशको ग्रहण करके पुरुषके वेषमें हाथीके ऊपर चढू और पीछे राजाको बैठाकर दोनों नगरके बाहर भ्रमण करें। उसने १. श इतस्तेर स । २. प सशिवाल, फ शशिवाल,ब सिवाल, श ससिवाल । ३. फ सेवालेन, ब सैवालेन । For Private & Personal Use Only
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