Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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२७८ पुण्यास्रवकथाकोशम्
[ ६-२, ४३ : एते नव निधयः। चर्मच्छत्ररत्ने चूडामण्याख्यं मणिरत्नंचिन्तामण्याख्यं काकिणीरत्नम् एतानि श्रीगृहजानि । अयोध्याभिधं सेनापतिरत्नम् अजितंजयाख्यमश्वरत्नम् , विजयापर्वताभिधं गजरत्नम् , भद्रतुण्डाख्यं स्थपतिरत्नमिमानि रत्नानि स्वपुरजानि। बुद्धिसमुद्राख्यं पुरोहितरत्नं कामवृष्टयाभिधं गृहपतिरत्नं सुभद्रा स्त्रीरत्नमिमानि विजयार्धजानि। वज्रतुण्डा शक्तिः सिंहाटकः कुन्तः लोहवाहिनी शस्त्री मनोजकः कणयः [पः] भूतमुखं खेटं वज्रकाण्डं धनुः अमोघाख्याः शराः अभेद्यं कवचं द्वादशयोजननादा जनानन्दाख्या द्वादशभेर्यः जयघोषसंज्ञाः पटहा द्वादश गम्भीरावर्ताख्याः शङ्खाश्चतुर्विंशतिः वीराङ्गदौ कटको द्वासप्ततिः सहस्र संख्यानि पुराणि पण्णवतिकोटिग्रामाः पञ्चनवतिसहस्र द्रोणाः चतुरशीतिसहस्राणि पत्तनानि षोडशसहस्राणि खेटकानि अन्तर्वीपाः षट्पञ्चाशत् षोडशसहस्राणि संवाहनानि एककोटी स्थाल्यः कुक्षिनिवासाः सप्तशताः अष्टशतकक्षाः नन्दभ्रमणश्चमूनिवासः क्षितिसारसाल. वेष्टितं निवासगृहं वैजयन्ती सिंहद्वारं सर्वतोभद्रम् श्रास्थानमण्डपो दिकस्वस्तिकः गिरिकूट दिगवलोकनगृहं वर्धमानमीक्षणागारः धर्मान्तकं धारागृहं वर्षाकालगृहं गृहकूटं शय्यागृह पुष्करावती कुवेरकान्तं भाण्डागारं सुवर्णधाराख्यं कोष्टागारं सुररम्यं वस्त्रगृहं मेघाख्यं मजनगृहम् अवतंसो हारः तडित्प्रभे कुण्डले पादुके विषमोचके अनुत्तरं सिंहासनम् अतुला. ख्यानि द्वात्रिंशच्चामराणि गृहसिंहवाहिनी शय्या रविप्रभं छत्रं नभोवलम्बा द्वाचत्वारिंशत् चौदह रत्नोंकी भी रक्षा वे यक्ष करते थे उनमें-से सुदर्शन चक्र, सुनन्द खड्ग और दण्ड इन तीन रत्नोंका निर्देश ऊपर किया जा चुका है । चर्म, छत्र, चूड़ामणि नामका मणिरत्न और चिन्तामणि नामका काकिणीरत्न, ये चार रत्न श्रीगृहमें उत्पन्न हुआ करते हैं । अयोध्य नामका सेनापतिरत्न अजितंजय नामका अश्वरत्न, विजयार्धपर्वत नामका गजरत्न और भद्रतुण्ड नामका स्थपतिरत्न, ये चार रत्न अपने नगरमें उत्पन्न होते हैं। बुद्धिसमुद्र नामका पुरोहितरत्न, कामवृष्टि नामका गृहपतिरत्न और सुभद्रा नामका स्त्रीरत्न, ये तीन विजयाध पर्वतपर उत्पन्न होते हैं। वज्रतुण्डा शक्ति, सिंहाटक भाला, लोहवाहिनी छुरी, मनोजब (मनोवेग ) कणप ( शस्त्रविशेष ), भूतमुख नामका खेट ( शस्त्रविशेष ), वज्रकाण्ड नामका धनुष, अमोघ नामके बाण, अभेद्य कवच, बारह योजन पर्यन्त शब्दको पहुँचानेवाली जनानन्दा नामकी बारह भेरियाँ, जयघोष नामके बारह पटह ( नगाड़ा), गम्भीरावर्त नामके चौबीस शंख, वीरांगद नामके दो कड़े, बहत्तर हजार पुर, छयानबै करोड़ गाँव, पंचानबै हजार द्रोण, चौरासी हजार पत्तन, सोलह हजार खेटक (खेड़े ), छप्पन अन्तीप, सोलह हजार संवाहन, एक करोड़ थाली, सात सौ कुक्षिनिवास, आठ सौ कक्षायें, नन्दभ्रमण ( नन्दावर्त ) नामका सेनानिवास, क्षितिसार कोटसे घिरा हुआ वैजयन्ती नामका निवासगृह, सर्वतोभद्र नामका सिंहद्वार, दिकम्वस्तिक नामका सभामण्डप, गिरिकूट नामका दिगवलोकन(दिशाओंका दर्शक ) गृह, वर्धमान नामका प्रेक्षागृह, गर्मीकी बाधाको नष्ट करनेवाला धारागृह, [वर्षाकालके लिए उपयोगी ] गृहकूट नामका वर्षाकालगृह, पुष्करावती ( पुष्करावर्त ) नामका शयनागार, कुबेरकान्त नामका भांडागार, सुवर्णधार ( वसुधारक ) नामका कोष्ठागार ( कोठार ), सुररम्य वस्त्रगृह, मेघ नामका स्नानगृह, अवतंस नामका हार, बिजली जैसी कान्तिवाले तडित्प्रभ नामके दो कुण्डल, विषमोचक खड़ाऊँ, अनुत्तर सिंहासन, अतुल (अनुपम ) नामके बत्तीस चामर,
१.फ निधयः चक्रखड़गदण्डरत्नानि चर्मछत्ररत्ने । Jain Education International
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