Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 302
________________ : ६-२, ४३] ६. दानफलम् २ २८१ सर्वसह' ५७ वरुण ५८ धनपाल ५२ मेघवाहन ६० तेजोराशि ६१ महावीर ६२ महारथ ६३ विशाल ६४ महोज्ज्वल ६५ सुविशाल ६६ वज्र ६७ वज्रशाल ६८ चन्द्रचूड़ ६६ मेघेश्वर ७० महारथै ७१ कच्छ ७२ महाकच्छ ७३ नमि ७४ विनमि ७५ बल ७६ अतिबल ७७ वज्रबल ७८ नन्दि ७६ महाभोग ८० नन्दिमित्र८१ महानुभाव ८२ कामदेव ८३ अनुपमाख्यै ८४ श्चतुरशीतिगणधरैः, सार्धसप्तशताधिकचतुःसहस्रपूर्वधरैः, सार्धशताधिकचतुःसहस्रः शिष्यकैः, नवसहस्रावधिज्ञानिभिः, विंशतिसहस्रकेवलिभिः, विंशतिसहस्र-षट्शताधिकै क्रियिकर्द्धिप्राप्तः, सार्धसप्तशताधिकद्वादशसहस्रविपुलमतिभिः, तावद्भिरेव वादिभिः, सात्रिलक्षार्यिकाभिः, त्रिलक्षश्रावकैः, पञ्चलक्षश्राविकाभिः, असंख्यातदेव-देवीभिः, बहुकोटितिर्यग्भिश्च सहस्रवर्षशुन्यैकलक्षपूर्वाणां विहृत्य कैलाशे योगनिरोधं कतुमारब्धवान् । इतश्चक्री स्वप्ने मेरुं सिद्धशिलापर्यन्तं प्रवृद्ध ददर्शान्येऽपि तत्कुमारा अर्ककीर्त्यादयः सूर्यादिकमुपरि गच्छन्तं लुलोकिरे । प्रातः पृष्टेन पुरोहितेनोक्तम्-एते स्वप्ना आदिजिनमुक्ति सूचयन्ति । तत् श्रुत्वा भरतायः कैलाशं गत्वा वृषभं समभ्यया॑नम्य तन्मौनं विलोक्य विषण्णा बभूवुः। चतुर्दश दिनानि तत्र पूजादिकं कुर्वन्तः स्थिताः । स्वामी चतुर्दशदिनोगनिरोधं कृत्वा माघकृष्णचतुर्दश्यां निवृत्तः। भरतः शोकं कुर्वन् वृषभसेनादिभिः संबोधितः भग ५२ भगदेव ५३ भगदत्त ५४ फल्गु ५५ मित्रफल्गु ५६ प्रजापति ५७ सर्वसह ५८ वरुण ५६ धनपाल ६० मेघवाहन ६१ तेजोराशि ६२ महावीर ६३ महारथ ६४ विशाल ६५ महोज्ज्वल ६६ सुविशाल ६७ वज्र ६८ वज्रशाल ६६ चन्द्रचूड ७० मेघेश्वर ७१ महारथ ७२ कच्छ ७३ महाकच्छ ७४ नमि ७५ विनमि ७६ बल ७७ अतिबल ७८ वज्रबल ७६ नन्दी ८० महाभोग ८१ नन्दिमित्र ८२ महानुभाव ८३ कामदेव और ८४ अनुपम नामके चौरासी गणधरों, चार हजार साढ़े सात सौ ( ४७५०) पूर्वधरों, चार हजार डेढ़ सौ ( ४१५०) शिक्षकों, नौ हजार ( ९००० ) अवधिज्ञानियों, बीस हजार (२०००० ) केवलियों, बीस हजार छह सौ (२०६००) विक्रियाऋद्धिधारकों, बारह हजार साढ़े सात सौ (१२७५०) विपुलमतिमनःपर्ययज्ञानियों, उतने (१२७५० ) ही वादियों, साढ़े तीन लाख (३५००००) आर्यिकाओं, तीन लाख (३०००००) श्रावकों, पाँच लाख (५०००००) श्राविकाओं, असंख्यात देव-देवियों और बहुत करोड़ तिर्यञ्चोंके साथ एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व तक विहार करके कैलाश पर्वतके ऊपर योगनिरोध करना प्रारम्भ किया। इधर चक्रवर्ती भरतने स्वप्नमें मेरुको सिद्धशिला पर्यन्त बढ़ते हुए देखा तथा अन्य अर्ककीर्ति आदि उसके पुत्रोंने भी सूर्यादिको ऊपर जाते हुए देखा । प्रातः कालके होनेपर उसने परोहितसे इन स्वप्नोंका फल पूछा । पुरोहितने कहा कि ये स्वप्न आदिनाथ भगवान्की मुक्तिको सचित करते हैं। यह सुनकर भरतादिक कैलाश पर्वतके ऊपर गये । वहाँ उन सबने वृषभ जिनेन्द्रकी पूजा व नमस्कार करके जब उन्हें मौनपूर्वक स्थित देखा तब वे खेदखिन्न हुए। वे चौदह दिन तक भगवान् जिनेन्द्रकी पूजा आदि करते हुए वहींपर स्थित रहे । आदिनाथ जिनेन्द्रने चौदह दिनमें योगनिरोध करके माघ कृष्ण चतुर्दशीके दिन मुक्ति प्राप्त की। उस समय भरतको बहुत १. श सर्वस। २. प श महाज्वल ब महोज्वाल। ३. श महारव। ४. श निमि ७४ विनिमि । ५. ज प शैष्यकै: ब शैक्षकः । Jain Education Internaal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362