Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 343
________________ ३२२ पुण्यास्रवकथाकोशम् [६-१५, ५६ : उपविष्टौ । स तां विलोक्य मातः, कस्मादागतासीति पप्रच्छ । सा कथमपि न निरूपितवती, तदा महाग्रहेण पृष्टवान् । तदा तया स्वरूपं कथितम् । स बभाण-त्वं मदगृहे पचनं कुरु, पुत्रोऽयं ते मद्वत्सकान् पालयतु । युवाभ्यां ग्रासावासादिकमहं दास्यामि । तयाभ्युपगतम् । स्वगृहनिकटे तृणकुटीं कृत्वा दत्ता। तावुभौ तत्प्रेषणं कृत्वा तेन दत्तग्रासादिकं सेवित्वा तस्थतुः। तदा बलभद्रस्य सप्त पुत्रास्तान् पायसं भुजानान् प्रतिदिनमालोक्याकृतपुण्यः पायसं स्वमातरं याचते । तदा तं तत्पुत्रास्ताडयन्ति । स तन्मारणाभावं करोति । तस्य पायसवाञ्छया मुखादिकं शोफयुतं जज्ञे । तं शोफयुतं दृष्ट्वा स पामराधिपः पप्रच्छ-हे ऽकृतपुण्य, किमिति शोफोऽभूत् । सोऽवोचत्- पायसाप्राप्तः । तदा स कियद्दुग्धं तण्डुलघृतादिक मदत्तोक्तवांश्चाम्ब, पायसं पक्त्वाद्य स्वगृहेऽकृतपुण्यस्य भोक्तं प्रयच्छ । एवं करोमीति दुग्धादिकं गृहीत्वा स्वगृहं गत्वोक्तवती-पुत्राद्य पायसं भोक्तं तुभ्यं दास्यामः, अरण्याच्छीघ्रमागच्छ । एवं करोमीति भणित्वा वत्सान् गृहीत्वाटवीं ययौ। इतस्तया पायसादिकं पक्वम् । मध्याह्ने स गृहमागतः। तं गृहपालकं धृत्वा जलार्थ गच्छन्ती पुत्रस्य वभाण- यः कोऽपि अवन्ती देशके अन्तर्गत सीसवाक गाँवमें जा पहुँची । उस गाँवके स्वामीका नाम बलभद्र था । वहाँ जाकर वे दोनों उसके घर पहुँचे व वहींपर बैठ गये। उसको देखकर बलभद्रने पूछा कि हे माता ! तुम कहाँसे आ रही हो ? परन्तु जब वह किसी प्रकारसे भी उत्तर न दे सकी तब उसने उससे बहुत आग्रहके साथ पूछा । इसपर उसने अपनी सच्ची परिस्थिति उसे बतला दी। उसे सुनकर वह बोला कि तुम मेरे घरपर भोजन बनानेका काम करो और यह तुम्हारा पुत्र मेरे बछड़ोंका पालन करे । ऐसा करनेपर मैं तुम दोनोंके लिये भोजन और रहने के लिये स्थान आदि दूंगा। इसे उसने स्वीकार कर लिया। तब बलभद्रने अपने घरके पास एक घासकी झोंपड़ी बनवाकर उसको रहनेके लिए दे दी। इस प्रकार वे दोनों उसकी सेवा करके उसके द्वारा दिये गये भोजन आदिका उपभोग करते हुए वहाँ रहने लगे। उस समय बलभद्रके सात पुत्र थे । उनको प्रतिदिन खीर खाते हुए देखकर अकृतपुण्य अपनी मातासे खीर माँगा करता था। तब बलभद्रके पुत्र उसे मारा करते थे। जब बलभद्र उन्हें मारते देखता तब वह उन्हें उसके मारनेसे रोकता था। खीर खानेकी इच्छा पूर्ण न होने [व उनके द्वारा मार खानेसे ] उसका मुख आदि सूज गया था । उसकी ऐसी अवस्था देखकर बलभद्रने पूछा कि हे अकृतपुण्य ! तेरा मुख आदि क्यों सूज रहा है ? इसपर उसने उत्तर दिया कि खीरके न मिलनेसे मैं खिन्न रहा करता हूँ। तब उसने कुछ दूध, चावल और घी आदिको देकर मृष्टदानासे कहा कि हे माता ! तुम आज घरपर खीर बनाकर अकृतपुण्यको खानेके लिये दो। तब 'ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगी' कहकर वह उन चावल आदिको लेकर घर चली गई। वहाँ उसने अकृतपुण्यसे कहा कि हे पुत्र ! आज मैं तेरे लिये खीर खानेको दूंगी, तू जंगलसे जल्दी वापस आ जाना। तब वह 'अच्छा, मैं आज जल्दी आ जाऊँगा' यह कहता हुआ बछड़ों को लेकर जंगलमें चला गया। इधर मृष्टदानाने खीर आदिको बनाकर तैयार कर लिया। दोपहरको अकृतपुण्य घर वापस आ गया। तब मृष्टदाना उसे घरकी देख-भाल रखनेके लिये कहकर पानी लेने के लिये चली गई। जाते-जाते वह अकृतपुण्यसे यह ___१. श ग्रास । २. फ सावोचत् । ३. प फ ब तंदुल । ४. ब दास्याम्यरण्या । ५. ब पकं ।.jainelibr. Jain Education International For Private & Personal Use Only

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