Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 347
________________ ३२६ पुण्यानवकथाकोशम् [६-१५, ५६ : न्यवत्त'। सोऽतिविशिष्टां मालां सृजति स्म । तदा तत्र श्रेणिको राजा, देवी चेलनी, पुत्री गुणवती । तन्निमित्तं पुष्पावती प्रतिदिनं मालां नयति, तदा तेन सृष्टां मालां निनाय । तदा कुमार्यवोचत्-हे पुष्पावति, द्वि-त्रीणि दिनानि किमिति नागतासि । सावोचत्-मे पितुभगिनीपुत्रः समागतः, तत्संभ्रमेण स्थिता। तां मालामवलोक्य हृष्टा गुणवती बभाषे-केनेयं प्रथिता मालातिविशिष्टा । तया स्वरूपं निरूपितम् । तदा कुमारी 'ते वरोऽत्युत्कृष्टो जातः' इति संतुतोष। एकदा धन्यकुमारः कस्यचिदिभ्यस्यापण्यं चित्रविचित्रं दृष्ट्वा तत्रोपविष्टस्तदा तस्य महान् लाभोऽजनि । स तत्स्वरूपं विबुध्य मत्पुत्रीं तुभ्यं ददामीति बभाण । अन्यदा शालिभद्रो नाम प्रसिद्धो वैश्यस्तदापणे कुमार उपविष्टस्तदा तस्यापि महान् लाभोऽभूदिति सोऽवोचत् मभगिनीं सुभद्रां तुभ्यं दास्यामीति । अन्यदा राजश्रेष्ठी श्रीकोर्तिः पुरमध्ये घोषणां कारितवान् 'यो वैश्यात्मजः काकिण्या एकस्मिन् दिने सहस्रसुवर्ण प्रयच्छति तस्मै मत्पुत्रीं धनवतीं दास्यामि' इति । सा घोषणा धन्यकुमारेण धृता। अध्यक्षेण समं तत्काकिणी गृहीत्वा तया मालालम्बनतृणानि जग्राह। तानि स मालाकारेभ्योऽदत्त, ततः पुष्पाणि जग्राह, तैरतिविशिष्टा पुत्री थी, जो धन्यकुमारको देखकर उसके विषयमें अतिशय आसक्त हो गई थी। एक समय उसने धन्यकुमारके आगे कुछ फूलों और धागेको लाकर रक्खा । धन्यकुमारने उनकी एक अतिशय सुन्दर माला बना दी । उस समय राजगृह नगरमें श्रेणिक राजा राज्य करता था। उसकी पत्नीका नाम चेलनी था। उनके एक गुणवती नामकी पुत्री थी। उसके लिये पुष्पावती प्रतिदिन माला ले जाया करती थी। उस दिन पुष्पावती धन्यकुमारके द्वारा बनायी हुई मालाको ले गई। उस समय गुणवतीने उससे पूछा कि हे पुष्पावती ! तुम दो तीन दिन क्यों नहीं आयीं ? इसपर पुष्पावतीने कहा कि मेरे पिताका भानजा आया है, उसकी पाहुनगतिमें घरपर ही रही । उस मालाको देखकर हर्षको प्राप्त होती हुई गणवतीने पुनः उससे पूछा कि इस अनुपम मालाको किसने गूंथा है ? तब उसने सब यथार्थ स्थिति उसे बतला दी। इसपर गुणवतीने 'तेरे लिये उत्तम वर प्राप्त हुआ है' यह कहते हुए सन्तोष प्रगट किया। एक समय धन्यकुमार किसी धनिक सेठकी चित्र-विचित्र (सुसज्जित) दूकानको दखकर वहाँपर बैठ गया । उस समय सेठको बहुत लाभ हुआ । सेठने यह समझ लिया कि इसके मानेसे ही मुझे वह महान् लाभ हुआ है। इसीलिए उसने धन्यकुमारसे कहा कि मैं तुम्हारे लिए अपनी पुत्री देता हूँ। दूसरे दिन वह कुमार शालिभद्र नामक प्रसिद्ध वैश्यकी दूकानपर जा बैठा । उसको भी उस समय उसी प्रकारसे महान् लाभ हुआ। तब उसने भी धन्यकुमारसे कहा कि मैं तुम्हारे लिये अपनी बहिन सुभद्राको दूंगा। एक समय राजसेठ श्रीकीर्तिने नगरके मध्यमें यह घोषणा करायी कि जो वैश्यपुत्र एक कौड़ीके द्वारा एक दिनमें हज़ार दीनारोंको प्राप्त करके मुझे देगा उसके लिये मैं अपनी पुत्री धनवतीको दे दूंगा । उस घोषणाको धन्यकुमारने स्वीकार कर लिया। तब वह अध्यक्षके साथ जाकर उस कौड़ीको ले आया। उससे उसने मालाओंके रखने के साधनभूत तृणोंको खरीदकर उन्हें मालियोंके लिये दे दिया और उनके बदले में उनसे फूलों को ले लिया । १. फ ब सूत्रं निधत्त । २. श महल्लाभो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362