Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 336
________________ ३१५ ६-१५, ५६] ६. दानफलम् १५ दानेन तथाविधा जातान्यः कि न स्यादिति ॥१४॥ [५६ ] यद्धस्ते शातकुम्भं पतितमपि मली. संभूतममलं संजातः सोऽपि दानाद् दिवि मणिभवने देवीसुरमणः । तस्मादासीत् स धन्यः सुगुणनिधिपतिर्वैश्यो विमलधी स्तस्माहानं हि देयं विमलगणगणैव्यैः समनये ॥ १५॥ अस्य कथा- अत्रैवार्यखण्डेऽवन्तीविषये उज्जयिन्यां राजावनिपालस्तत्रेभ्यो वैश्यो धनपालो भार्या प्रभावती। तस्या देवदत्तादयः पुत्राः सप्त । ते च केचिदक्षराभ्यास केचिद्व्यवहारं कुर्वन्तस्तस्थुः । अन्यदा प्रभावती चतुर्थस्नानं कृत्वा पत्या सुप्ता रात्रिपश्चिमयामे धवलोत्तुङ्गवृषभ-कल्पवृक्ष-चन्द्रादीनां स्वप्ने स्व-गृहप्रवेशमपश्यत् । 'प्रभाते भर्तुनिरूपिते सोऽवोचत्-ते वैश्यकुलप्रधानं त्यागी स्वकीर्त्या धवलीकृतजगत्त्रयः पुत्रो भविष्यतीति।श्रुत्वा सातिहण गर्भचिह सति नवमासावसाने पत्रमसत। तन्नालं परितम । खनने द्रव्यपूर्णःकटाहो निर्जगाम, तन्मज्जनार्थ खननप्रदेशेऽपि । धनपालेन तत्स्वरूपमवनिपालो विज्ञप्तो बभाण 'त्वत्पुत्रपुण्येन निर्गतं यद् द्रव्यं तस्य स एव स्वामी' इति । तदनु श्रेष्ठी संतुष्टो गृहमागत्य दानसे वैसी विभूतिको प्राप्त हुई है तब क्या अन्य विवेकी भव्य जीव उसके प्रभावसे वैसी विभूतिको नहीं प्राप्त होगा ? अवश्य होगा ॥१४॥ जिसके हाथमेंसे गिरा हुआ निर्मल सोना भी मलिन हो गया वह (अकृतपण्य) भी मुनिदानके प्रभावसे स्वर्गके भीतर मणिमय भवन में उत्पन्न होकर देवियोंके मध्यमें रमनेवाला देव हुआ और फिर वहाँ से च्युत होकर उत्तम गुणोंसे संयुक्त निर्मल बुद्धिका धारक धन्यकुमार वैश्य हुआ। इसीलिये निर्मल गुणोंके समूहसे संयुक्त भव्य जीवोंको उत्तम मुनिके लिये दान देना चाहिये ॥१५॥ इसकी कथा इस प्रकार है- इसी आर्य खण्डके भीतर अवन्ती देशमें उज्जयिनी नामकी नगरी है। वहाँ अवनिपाल नामका राजा राज्य करता था। वहींपर धनपाल नामका एक धनी वैश्य था। उसकी पत्नीका नाम प्रभावती था। उसके देवदत्त आदि सात पुत्र थे । उनमें कुछ तो शिक्षा प्राप्त कर रहे थे और कुछ व्यवसाय करते थे। एक समय प्रभावती चतुर्थस्नान करके पतिके साथ सोई हुई थी। उस समय उसने रात्रिके पिछले प्रहरमें स्वप्नमें उन्नत श्वेत बैल, कल्पवृक्ष और चन्द्र आदिकों को अपने घरमें प्रवेश करते हुए देखा । प्रभात हो जानेपर उसने उक्त स्वप्नोंका वृत्तान्त पतिसे कहा। तब उसने बतलाया कि तुम्हारे वैश्य कुलमें प्रधान, दानी एवं अपनी कीर्तिसे तीनों लोकोंको धवलित करनेवाला पुत्र उत्पन्न होगा। यह सुनकर प्रभावतीको बहुत हर्ष हुआ। तत्पश्चात् उसके गर्भके चिह्न दिखने लगे। इसके बाद उसके नौ महीने के अन्तमें पुत्र उत्पन्न हुआ। उसके नालको गाड़नेके लिये जहाँ भूमि खोदी गई थी वहाँ धनसे परिपूर्ण एक कड़ाही निकली। इसी प्रकार उसको नहलानेके लिये खोदे गये स्थानमें भी धन प्राप्त हुआ। इसका समाचार धनपालने अवनिपाल राजाको दिया । इसपर राजाने कहा कि यह तुम्हारे पुत्रके पुण्यसे प्राप्त हुआ है, इसलिए उसका स्वामी तुम्हारा वह पुत्र ही है। इससे सन्तुष्ट होकर सेठ घर वापस Jain Education Internatnaब -प्रतिपाठोऽयम् । श पुत्राः सप्तति के । २. व पतिनाenly www.jainelibrary.org

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