Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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: ६-१५, ५६]
६. दानफलम् १५ महाद्रव्यं समुपाया॑गतेषु संमुखमपि' नालोकते । अहो चित्रम् । तद्वचनमाकर्ण्य माता मनसि निधाय धन्यकुमारादिभ्यो भोजनं दत्त्वा स्वयमपि भुक्त्वा काष्ठपात्रीभृतजले तान् मञ्चकपादान् प्रक्षालयन्ती तस्थौ । ते च पुष्कलीभूताः प्रक्षालनावसरे तज्झम्पनेऽपसृते ततो गलितानि रत्नानि, भूर्जपत्रं च निर्गतं । तानि स्वपुत्राणां दर्शयति स्म । ततस्ते गलितगर्वा बभूवुः । ते कस्य मञ्चकस्य पादास्तत्पत्रं केन कथं लिखितमित्युक्ते श्राह-पूर्व तत्पुरे वसुमित्रनामा श्रेष्ठी बभूवातिपुण्यवान् । तत्पुण्येन तद्गृहे नवनिधानानि जातानि । तेनैकदा तत्रोद्यानमागतोऽवधिज्ञानी मुनिः पृष्टोऽस्मन्नवनिधीनाम् अग्रे कः स्वामी स्यात् । तैरुक्तम्धनपालश्रेष्ठिनः पुत्रो धन्यकुमारः स्वामी भवेत् । तत् श्रुत्वा वसुमित्रः स्वगृहमेत्यैतत्पत्रं लिखितवान् । कथम्। श्रीमन्महामण्डलेश्वरावनिपालराज्ये यो भविष्यति धन्यकुमारो वैश्यकुलतिलकः स मदगृहे एतदेतत्प्रदेशस्थनवनिधीन् गृहीत्वा सुखेन तिष्ठतु। मङ्गलं महाश्रीरिति । एतद्रत्नैः समं मञ्चकपादेषु निक्षिप्य श्रेष्ठी सुखेन स्थितः, स्वायुरन्ते संन्यासेन दिवं ययौ । तस्मिन् गते तद्गृहस्था जना सर्वेऽपि मरकेण मृताः। पश्चाद्यो मृतः स तेनैव मञ्चकेन मातङ्गैःसंस्कारयितुं नीतः। तत्पादांश्चाण्डालहस्तेन धन्यकुमारो जग्राह, तत्पत्रं वाचितवान् । वना कर रही है। और इधर हम बहुत-सा धन कमाकर लाते हैं फिर भी वह हमारी ओर देखती भी नहीं है; यह कैसी विचित्र बात है। उनके इस उलाहनेको सुनकर माताने उसे मनमें रखते हुए धन्यकुमार आदिको भोजन कराया और तत्पश्चात् स्वयं भी भोजन किया। बादमें उसने एक लकड़ीके पात्रमें पानी भरकर उन खाटके पायोंको धोना प्रारम्भ किया। इस क्रियासे वे निर्मल हो गये । धोनेके समयमें मलके दूर हो जानेपर उनसे रत्न गिरे और साथ ही एक भोजपत्र भी निकला । प्रभावतीने इन सबको उन पुत्रों के लिये दिखलाया । इससे उनका अभिमान नष्ट हो गया। वे पाये किसकी खाटके थे और वह पत्र किसने व कैसे लिखा था, इसका वृत्तान्त इस प्रकार है
पहिले उस नगरमें एक अतिशय पुण्यवान् वसुमित्र नामका सेठ रहता था। उसके पुण्योदयसे उसके घरमें नौ निधियाँ उत्पन्न हुई थीं । एक दिन उसके उद्यानमें एक अवधिज्ञानी मुनि आये थे। तब सेठ वसुमित्रने उनसे पूछा था कि हमारी इन नौ निधियोंका स्वामी आगे कौन होगा। इसके उत्तरमें उन्होंने यह कहा था कि उनका स्वामी धनपाल सेठका पुत्र धन्यकुमार होगा। इस उत्तरको सुनकर वसुमित्र सेठने घर आकर यह पत्र लिखा था- श्रीमान् महामण्डलेश्वर अवनिपाल राजाके राज्यमें वैश्यकुलमें श्रेष्ठ जो कोई धन्यकुमार नामका उत्तम पुरुष होगा वह मेरे घरके भीतर अमुक-अमुक स्थानमें स्थित नौ निधियोंको लेकर सुखसे स्थित हो । महती लक्ष्मीसे युक्त उसका कल्याण हो । तत्पश्चात् वह रत्नोंके साथ इस पत्रको खाटके पायोंमें रखकर सुखसे स्थित हो गया। फिर वह आयुके अन्तमें संन्यासके साथ मरणको प्राप्त होकर स्वर्गमें गया। उसके मरनेके पश्चात्. उस घरके सब ही मनुष्य मरी रोग ( प्लेग ) से भर गये उनमें जो सबके पीछे मरा उसे अग्निसंस्कारके लिये चाण्डाल उसी खाटसे स्मशानमें ले गये। उसके पायोंको
१. फ ब सन्मुखमपि । २. ब लोकते हो विचित्रं । ३. ब तज्झंपनोपसृते । ४. ज प श कूचिपत्रं । ५. ब तं । ६. श’ मियुक्तो। ७. फ वैश्यकुले तिलकः। ८. ब प्रदेशस्था नवनिधीन् । ९. ब तत्पादांश्चंडाल
हस्ते धन्य । १०. ब तत्पत्रं च वाचितवान श तत्रत्यं वाचितवान । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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