Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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: १-८]
१. पूजाफलम् ८ स पिपीलिकाप्रदेशे धृतवान् । पिपोलिकाभिराकृष्टो दवरकः । ततः सगुणं प्रवालं तस्या दत्तवान्।
___ ततोऽत्यासक्ता पितरं बभाण शोधं विवाह कुर्विति । ततस्तत्पितुः प्रार्थनावशात् सानुरागबुद्धया च तां परिणीतवान् श्रेणिकः सुखेन स्थितः । कतिपयदिनैस्तस्या गर्भोऽभूदोहलकश्च सप्तदिनान्यभयघोषणारूपस्तमप्राप्नुवन्ती क्षीणशरीरा जाता। तच्चित्तं कथमपि विभिद्य श्रेणिकश्चिन्ताप्रपन्नो वेन्नानदीतटे गत्वा स्थितस्तदवसरे तदधीशवसुपालस्य हस्ती स्तम्भमुन्मूल्य राजादीनुल्लङध्य निर्गतः श्रेणिकेन वशीकृतः । तं चटित्वा पुरं प्रविश्य हस्ती बद्धस्तुऐन राशाभीष्टं याचस्वेत्युक्तेऽभिमानित्वादहंकारित्वाञ्च न किमपि याच्यते । तदेन्द्रदत्तनोक्तम्- देवास्य सप्तदिनान्यभयघोषणावाञ्छा विद्यते, तां प्रयच्छेति याचिता प्राप्ता च । ततस्तस्या अभयकुमारनामा पुत्रो बभूव । तमक्षरादिविद्यासु शिक्षयन् सुखेन स्थितः श्रेणिकः।
इतो राजगृहे उपश्रेणिकश्चिलातोपुत्राय राज्यं दत्त्वा मृतिमुपजगाम । स चान्याये प्रवर्तितुं लग्नः। ततः प्रधानैः श्रेणिकस्य विज्ञापनापत्र प्रस्थापितं राज्यार्थ शीघ्रमागम्यतामिति । ततः श्वशुरस्य स्वरूपं निवेद्य सपुत्रीपुत्रश्च पश्चादागच्छेति गमनोत्सुकोऽभूद्यदा तदा चीटियोंने उस धागेको खींचकर उसके दूसरी ओर पहुँचा दिया। बस फिर क्या था ? श्रेणिकने धागेसे संयुक्त प्रवाल मणि नन्दश्रीके लिए दे दिया।
तत्पश्चात् नन्दश्रीने श्रेणिकके ऊपर अत्यन्त आसक्त होकर उसके साथ शीघ्र ही विवाह कर देनेके लिए पितासे कहा। तब श्रेणिकने उसके पिताकी प्रार्थनासे तथा स्वयं अनुरागयुक्त होनेसे नन्दश्रीके साथ विवाह कर लिया। फिर वह वहाँ सुखपूर्वक रहने लगा। कुछ दिनोंमें नन्दश्रीके गर्भ रह गया। उस समय उसे सात दिन जीवहिंसा न करनेकी घोषणारूप दोहल उत्पन्न हुआ। उक्त दोहलकी पूर्ति न हो सकनेसे उसका शरीर उत्तरोत्तर कृश होने लगा। तब श्रेणिक किसी प्रकारसे उसके दोहलको ज्ञात करके चिन्तातुर हुआ। वह व्याकुल होकर वेन्ना (कृष्णवेणा ) नदीके किनारे जाकर स्थित था। इसी समय उस पुरके राजा वसुपालका हाथी खम्भेको उखाड़ कर राजा आदिको लाँघता हुआ वहाँ जा पहुँचा। श्रेणिकने उसे वशमें कर लिया। वह उसके ऊपर चढ़कर नगरमें प्रविष्ट हुआ। वहाँ पहुँचकर उसने हाथीको बाँध दिया। इससे राजाको बहुत प्रसन्नता हुई। उसने श्रेणिकसे अभीष्ट वरकी याचना करनेके लिए कहा। परन्तु अभिमानी और अहंकारी होनेसे श्रेणिकने राजासे कुछ भी याचना नहीं की। तब इन्द्रदत्तने कहा कि हे राजन् ! इसकी.इच्छा है कि नगरमें सात दिन तक अभयकी घोषणा की जाय। उसे स्वीकार करके वैसी घोषणा करा दीजिए। राजाने इसे स्वीकार करके नगरमें सात दिन तक अभयकी घोषणा करा दी । पश्चात् नन्दश्रीके अभयकुमार नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। श्रेणिकने उसे अक्षरादि विद्याओंमें शिक्षित किया । इस प्रकार श्रेणिक वहाँ सुखसे स्थित था।
उधर राजगृहमें उपश्रेणिक राजा चिलातीपुत्रको राज्य देकर मृत्युको प्राप्त हुआ। वह चिलातीपुत्र अन्याय मार्गमें प्रवृत्त हो गया। तब मंत्रियोंने श्रेणिकके पास विज्ञप्तिपत्र भेजकर उससे राज्य कार्यके निमित्त शीघ्र आनेकी प्रार्थना की। इस वृत्तान्तको श्रेणिकने अपने ससुरसे कहा। फिर वह 'आप अपनी पुत्री ( नन्दश्री ) और पुत्रीपुत्र ( अभयकुमार ) के साथ हमारे यहाँ पीछे आर्वे'
१. ब तस्य । २.५ वेत्रानदीतटे फ वेणानदीतटे ब वैण्णानदीतटे। ३. श वसुधापालस्य । ४. याचते। ५. फ ब शीघ्रमागंतव्यमिति । ६. फ ब निवेद्य पुत्र्या नप्ता च पश्चां ।
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