Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 283
________________ २६२ पुण्यात्रवकथाकोशम् [ ६-२, ४३ : श्रीमतीपतिः, पञ्चविंशत्यधिकषटशतबाणासनोत्सेधः, पल्यकोटिसहस्रकभागजीवितः, सुवर्णवर्णश्चन्द्रादिदर्शनेन बालक्रीडाकृतोपदेशः, प्रकाशितहा-मा-नीतिश्च । ततः पल्याष्टसहस्त्रकोटयेकभागे गते चन्द्राभोऽभूत प्रभावतीपतिः, चन्द्रवर्णः, षट्शतधनुरुत्सेधः, पल्यकोटिदशसहस्रकभागायुः, 'कृतपितापुत्रादिव्यवहारः, हा-मा-धिक्नीत्या कृतजनदोषनिराकरणः । अनन्तरं पल्याशीतिसहस्रकोटयेकभागेऽतिक्रान्ते जातो मरुहेव अनुपमापतिः, पञ्चसप्तत्यधिकपञ्चशतचापोत्सेधः, पल्यकोटिलौकभागायुः, कनकाभः । तदा वृष्टौ सत्यां नदनापसमदादिके जाते प्रदर्शिततत्तरणोपायः.तथैव कृतप्रजादोषनिराकरणः। अनन्तरं पल्याप्रक लक्षकोटयेकभागेऽतिक्रान्ते प्रसेनजिज्जातः । स च प्रस्वेदलवादिताङ्गः, सार्धपञ्चशतधनुरुत्सेधः, पल्यकोटिदशलक्षकभागायुः, प्रियङ्गुकान्तिः। तस्य तत्पित्रा अमितमतिनामवरकन्यया विवाहः कृतः । तदक्तम प्रसेनजितमायोज्य प्रस्वेदलवभूषितम् । विवाहविधिना धीरः प्रधानविधिकन्यया ॥१॥ इति । दसवाँ कुलकर उत्पन्न हुआ। उसकी देवीका नाम श्रीमती था। इसके शरीरकी उँचाई छह सौ पच्चीस धनुष, वर्ण सुवर्ण जैसा तथा आयु पल्यके हजार करोड़ भाग प्रमाण थी। इसने चन्द्र आदिको दिखलाकर बालकोंके खिलानेका उपदेश दिया था तथा शिक्षा देनेके लिये 'हा-मा' इस नीतिका ही उपयोग किया था। उसके पश्चात् पल्यका आठ हजार करोड़वाँ भाग बीत जानेपर चन्द्राभ नामका ग्यारहवाँ कुलकर उत्पन्न हुआ, उसकी देवीका नाम प्रभावती था। उसकी शरीर-कान्ति चन्द्रमाके समान, उँचाई छह सौ धनुष और आयु पल्यके दस हजार करोड़वें भाग प्रमाण थी। इसने आर्योंमें पिता और पुत्र आदिके व्यवहारको प्रचलित किया था । यह आर्योके द्वारा किये गये अपराधको नष्ट करनेके लिये 'हा-मा' के साथ 'धिक' का भी उपयोग करने लगा था । इसके पश्चात् पल्यका अस्सी हजार करोड़वाँ भाग बीत जानेपर मरुदेव नामका बारहवाँ कुलकर उत्पन्न हुआ था। उसकी प्रियाका नाम अनुपमा था । उसके शरीरकी उँचाई पाँच सौ पचत्तर धनुष, कान्ति सुवर्णके समान और आयु पल्यके एक लाख करोड़वें भाग प्रमाण थी । उसके समयमें वर्षा प्रारम्भ हो गई थी। इसलिये नद, नदी एवं उपसमुद्र आदि भी उत्पन्न हो गये थे। मरुद्देवने उनसे पार होनेका उपाय बतलाया था। उसने भी 'हा-मा-धिक्' नीतिके अनुसार प्रजाके दोषों को दूर किया था। इसके पश्चात् पल्यका आठ लाख करोड़वाँ भाग बीत जानेपर प्रसेनजित् नामका तेरहवाँ कुलकर उत्पन्न हुआ। पसीनेकी बूंदोंसे भीगे हुए शरीरको धारण करनेवाला वह साढ़े पाँच सौ धनुष ऊँचा था। उसकी आयु पल्यके दस लाख करोड़वं भाग प्रमाण और शरीरकी कान्ति प्रियंगुके समान थी। उसके पिताने उसका विवाह अमितमति नामकी उत्तम कन्याके साथ किया था। कहा भी है। (ह० पु० ७-१६७ )-- धीर मरुद्देव कुलकर पसीनेके कणोंसे विभूषित अपने पुत्र प्रसेनजित्के विवाहका आयोजन प्रधान कुलकी कन्याके साथ करके [ आयुके पूर्ण हो जानेपर मरणको प्राप्त हुआ ] ॥१॥ १. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श कृतः पिता । २. ब पल्याशीतिकोटय कभागे। ३. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श प्रदर्शिततरणो । ४. फ अमितगतिनाप्रवरकन्यया ( पश्चात् संशोधितः ) ब अमितमतिः । नामः वरवरकन्याया। ५. ह० पु० (७-१६७ ) प्रधानकुलकन्यया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362